दो राहें हैं जीवन के हर एक सफ़र में
दिखते हैं संगत हर एक नजर में
एक है ख़ुशी एक में ग़मों का बसेरा
एक में है सवेरा तो एक में अँधेरा
सही रास्ते को तु चुन ऐ मुसाफिर !
लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!
जाना बहुत दूर तुझको है राही
राहों के कंटक भी देंगे गवाही
शूलों की ना तू परवाह कर अब
यही तो हैं पथ के सच्चे सहारे
इन्ही से सहारा तू ले अब मुसाफिर !
लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!
जेहन में रख मत फूलों की बातें
मखमली यादें और चांदनी रातें
आगे है मंजिल तेरा निशाना
जहाँ ना लगेगा कोई बेगाना
मंजिल को तू कसकर पकड़ ले मुसाफिर !
लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!
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