तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 1 April 2012

मंजिल और मुसाफिर


दो राहें हैं जीवन के हर एक सफ़र में

दिखते हैं संगत हर एक नजर में

एक है ख़ुशी एक में ग़मों का बसेरा

एक में है सवेरा तो एक में अँधेरा

सही रास्ते को तु चुन ऐ मुसाफिर !

लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!



जाना बहुत दूर तुझको है राही

राहों के कंटक भी देंगे गवाही

शूलों की ना तू परवाह कर अब

यही तो हैं पथ के सच्चे सहारे

इन्ही से सहारा तू ले अब मुसाफिर !

लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!



जेहन में रख मत फूलों की बातें

मखमली यादें और चांदनी रातें

आगे है मंजिल तेरा निशाना

जहाँ ना लगेगा कोई बेगाना

मंजिल को तू कसकर पकड़ ले मुसाफिर !

लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!

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