तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 1 July 2011

भाई


पलकों से गिरता हर आँसू,
मुड़कर ये कहता है
कोई मेरा अपना भी,
ज़न्नत में रहता है ।।

यादें जिसकी पास मेरे और 
जिस्म पराया सा
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा,
तन्हाई सहता है ।।

सीखी जिससे रिश्तेदारी,
रस्मों की बुनियादें
वो खुद ही रिश्तों से अब,
मुँह फेरे रहता है ।।

सोच रहा था इस बार करूँगा,
गहरे राज की बातें  
क्या मालूम कि राज हमेशा,
राज ही रहता है ।।

मुझको जिस पर ऐतबार कुछ,
खुद से ज्यादा 'भाई'
होकर रुखसत राख - राख,
गंगा में बहता है
कोई मेरा अपना भी,
ज़न्नत में रहता है ।।