पलकों से गिरता हर
आँसू,
मुड़कर ये कहता है
।
कोई मेरा अपना भी,
ज़न्नत में रहता है
।।
यादें जिसकी पास मेरे
और
जिस्म पराया सा ।
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा,
तन्हाई सहता है ।।
सीखी जिससे रिश्तेदारी,
रस्मों की बुनियादें ।
वो खुद ही रिश्तों
से अब,
मुँह फेरे रहता है
।।
सोच रहा था इस
बार करूँगा,
गहरे राज की बातें
।
क्या मालूम कि राज
हमेशा,
राज ही रहता है
।।
मुझको जिस पर ऐतबार
कुछ,
खुद से ज्यादा 'भाई' ।
होकर रुखसत राख - राख,
गंगा में बहता है
।
कोई मेरा अपना भी,
ज़न्नत में रहता है
।।