तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 1 April 2012

"गजल"

पलकों से गिरता हर आँसू मुडकर ये कहता है,
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है |

यादें तेरी पास मेरे और जिस्म पराया सा,
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा, तन्हाई सहता है |

सीखी जिससे रिश्तेदारी, रश्मों की बुनियादें,
वो खुद ही रिश्तों से अब मुँह फेरे रहता है |

सोच रहा था, इस बार करूंगा राज की बातें,
क्या मालूम कि राज हमेशा राज ही रहता है |

मुझको जिस पर एतबार कुछ खुद से ज्यादा "भाई",
होकर रुखसत राख-राख गंगा में बहता है |
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है ||

--------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" ----------------------

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