तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Saturday 29 June 2013

तिश्नगी - विमोचन समारोह


















परम आत्मीय स्वजन,

सादर अभिवादन ।

आप सभी को यह सूचित करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है कि आगामी ७ जुलाई, २०१३ रविवार को मेरी प्रथम काव्य-कृति 'तिश्नगी' का विमोचन साहित्यिक-संस्था 'साहित्य-मंथन' के तत्वाधान में होना सुनिश्चित हुआ है। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद के अध्यक्ष एवं प्राचार्य प्रो. ऋषभ देव जी शर्मा के कर-कमलों द्वारा पुस्तक विमोचित होगी।

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता हैदराबाद से प्रकाशित भारतीय भाषा, संस्कृति एवं विचारों की प्रतिनिधि मासिक पत्रिका 'भास्वर-भारत' के संपादक डॉ. राधेश्याम जी शुक्ल करेंगे तथा अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. एम. वेंकटेश्वर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहेंगे।

इस कार्यक्रम में आप सभी साहित्यप्रेमियों एवं मित्रों की उपस्थिति प्रार्थनीय है।

दिन व समय - 7 जुलाई, 2013 - रविवार - (सायं - 4:00 बजे )
स्थान - सम्मेलन कक्ष, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद - हैदराबाद - 500 004 (निकट - खादी भण्डार एवं Visual Photo Studio)



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 - निवेदक
आशीष नैथानी
हैदराबाद
9666 060 273

Sunday 23 June 2013

हमें लौटना होगा पहाड़ !

जब बरसातें थम चुकी होंगी
जब तीर्थयात्री और पर्यटक
लौट चुके होंगे वापस
अपने-अपने आशियानों में
और जब माँ गँगा का क्रोध
शान्त हो चुका होगा,
हमें लौटना होगा पहाड़ ।

फिर से तलाशनी होगी प्राणवायु
हटाना होगा मिट्टी-पत्थर से बना मलबा
खोजनी होगी अपनी बची-खुची जमीन
फिर से बनाने होंगे उजड़े हुए मकान
टूटे हुए पुश्ते, टूटी दीवारें,
पुल और सड़कें ।

फिर से रखना होगा नींव का पत्थर
फिर से शुरू करना होगा कोई रोजगार
फिर से देखने होंगे सपने,
बहते आँसुओं को पोंछते हुए ।

फिर से बनायेंगे एक गौशाला
और पालेंगे मवेशियों को भी ।

हाँसमय लगेगा
घाव उथले तो हैं नहीं
पूरा समय लेंगे भरने में
मगर जब दर्द कुछ कम होगा
तो खेतों में लहलहा रहा होगा धान
मक्का कोदा झँगोरा और सरसों,
पेड़ों पर फिर से लद चुके होंगे फल
सेब, आडू और खुबानी के ।

गँगाजल फिर से मीठा हो चुका होगा
बद्री-केदार में आरतियाँ प्रारम्भ हो चुकी होंगी ।

बच्चे फिर से बस्ता सजा रहे होंगे
फिर से लौट आएगा -
गाय का रम्भाना
कोयल की कूक और
बच्चों की किलकारियाँ ।

पोंछ डालो अब इन आँसुओं को
विधाता की इच्छा के आगे किसी का बस नहीं चलता,
चलो बनायें एक नया गढ़वाल-कुमाऊँ
चलो लौट चलें पहाड़ों की ओर ।
     
                 शीष नैथानी लिल
                 २३ जून, २०१३

Saturday 15 June 2013

ये आँसू किसके हैं ?

उस रोज जब
तुम्हें स्टेशन पर छोड़कर
मैं वापस लौटा
तो डायरी में बस यही दो शब्द लिख पाया,
अलविदा प्रिये !

अगली सुबह जब सिरहाने से
निकाली वही डायरी
और खोला वही पन्ना
तो देखते हैं कि
रोशनाई कुछ फैली सी है
और वो काग़ज भी भीगा-भीगा सा है ।

न जाने क्या हुआ रातभर
न जाने कौन रोता रहा,
ये आँसू उन लफ़्जों के थे
या मेरी आँखों के ,
कौन जाने !

आशीष नैथानी 'सलिल'
हैदराबाद (जून,१५/२०१३)

Friday 14 June 2013

तिश्नगी - ISBN: 978-81-921666-4-0 (Tishnagi)




              'तिश्नगी...' युवा कवि आशीष नैथानी 'सलिलकी विताओं की पहली किताब है  तिश्नगी और सलिल अर्थात प्यास और पानी का विरोधाभास सहज ही ध्यान खींचता है  पर ठीक ही हैपानी दूसरों की प्यास बुझाता है - उसकी अपनी प्यास कभी कहीं बुझती है कि नहींकौन जाने ! खैर...

       
आशीष की ये कविताएँ उस तृषा को शब्दबद्ध करती हैं जिसके कारण हर संवेदनशील प्राणी निरंतर भटक रहा है  पानी पर सदा से यक्षों के पहरे हैं और किसी पांडव तक को अपने युग के प्रश्नों के उत्तर दिए बिना पानी नहीं मिलता विचित्र विडंबना हैपानी भी है अनंत और प्यास भी है अनंत  भोग चुक जाते हैंलोग चुक जाते हैंकाल चुक जाता हैदेश चुक जाते हैंतप चुक जाता हैतेज चु जाते है। कई बार तो जल भी चुक जाता है पर यह निगोड़ी प्यास चुके नहीं चुकती तृष्णा  जीर्णा वयमेव जीर्णाः 

        
तृषा रूप में समस्त जगत में व्यापने वाली बेचैनी आशीष के कवि की मूलभूत बेचैनी है  नुष्य और मनुष्य के बीच लगातार खाई बढती जा रही है और आपसी रिश्ते-नाते छीजते जा रहे हैं  ऐसे में यह युवा कवि संबंधों की मिठासप्रेमपूर्ण विश्वास और अपनेपन की प्यास को कविता का कलेवर प्रदान करने की सहज चेष्टा में संलग्न दिखाई देता है  संवेदनशीलतापरस्पर सहानुभूति और सुख-दुःख के रिश्ते फिर से हरे भरे हो जाएँ इसके लिए वर्षा की कामना कवि की प्यास का एक पहलूहै। किशोरावस्था का आकर्षणअल्हड़ रूप की आराधना, दर्शन की आकांक्षा, मिलन की प्रतीक्षासंयोग का उन्मादवियोग का अवसादउपालंभ  और शिकायतें, जागते-सोते देखे गए सपने और छोटी छोटी घटनाओं के स्मृति कोश में अंकित अक्स आशीष की तिश्नगी का दूसरा पहलू है  देस-दुनिया में सामाजिक न्याय की कमीमानवाधिकारों का हननऔर तो और बच्चों का शोषणसांप्रदायिकता, आतंकवादधर्मोन्माद और युद्ध से उत्पन्न होने वाली असुरक्षा था लोकतंत्र की हत्या करती हुई तानाशाही से  पैदा होने वाली चिंता युवा कवि सलिल की अबूझ पिपासा का तीसरा आयाम है। इसके अतिरिक्त मनुष्य और प्रकृति के अंतर्बाह्य सौंदर्य  के दर्शन से जुड़ा है इस कवि की शाश्वत तृषा का चौथा आयाम 

          
इस तरह तरह की प्यास को आशीष नैथानी 'सलिलने अपनी तरह से अभिव्यक्त किया है  भाषा के मामले में वे तनिक भी कट्टर नहीं हैं  बहती हुई भाषा उन्हें पसंद है जिसमें स्वाभाविक रूप से तत्सम और उर्दू शब्दावली एक साथ चली आती है  शैली के मामले में भी आशीष काफी लोकतांत्रिक  हैं। कहीं लोकगीतों का पुट है तो कहीं शेरोशायरी का अंदाज  पर प्यास अपनी जगह है । यह प्यास अंधेरे में प्रकाश के स्वप्न दिखाती है - "अंधेरी रात में / रोशन सुबह का ख्वाब अच्छा है /बच्चे के चेहरे पे हँसी है, / शहर में / कुछ तो जनाब अच्छा है "


              ...... 
तो जनाबसलिल की यह तिश्नगी सबकी तिश्नगी बने और सब अपने अपने सलिल को पा सकेंइसी कामना के साथ मैं इस कविता संग्रह का अभिनंदन करता हूँ 
                                                  

  16 मार्च, 2013                                                             - डॉऋषभ देव शर्मा 
                                                     आचार्य एवं अध्यक्ष 
                                                     उच्च शिक्षा और शोध संस्थान 
                                                     दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा 
                                                     खैरताबादहैदराबाद

ग़ज़ल !!!

दवा से दर्द औ' दिल से वो इक चेहरा छुपाते हैं ।
वो कैसे हैं अदावत भी जो शिद्दत से निभाते हैं ॥

यही थी शर्त जीने की, कि फिर वापस न लौटेंगे ।
मगर सच ये कि वो अब भी ख़यालों में सताते हैं ॥  

हुआ अहसास इतना ही जो तोडा गुल को टहनी से ।
किसी की मुस्कुराहट को किसी का घर जलाते हैं ॥

पतंग उड़ती हवा में ज़िन्दगी की कटके गिरनी है ।
ये हमको देखना होगा, किसे कैसे बचाते हैं ॥

मुहब्बत में नसीब इतना हुआ तुमको 'सलिल' कहना ।
अजल की राह के काँटे भी अब मरहम लगाते हैं ॥

[[ अदावत - दुश्मनी,   अजल - मृत्यु ]]

आशीष नैथानी 'सलिल'... जून,५/२०१३ (हैदराबाद)