तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 8 April 2012

संजोग



आज फिर छाया अँधेरा, दिन दीवाना टल गया
मैं भी अपनी खाट पर आकर थका सा ढल गया,
थामकर उंगली में तेरे नाम की ये लेखनी
मैं अँधेरी रात में बारूद सा ही जल गया |

क्यों तेरी मुस्कान से एक बीज दिल में पल गया
कब कहाँ कैसे ये मोती, हार में बदल गया,
ख़्वाबों में पाने को तुझे क्यों मन मेरा मचल गया
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |

देखकर जब हुस्न तेरा दिल मेरा पिघल गया
छूकर तेरी बाँहों को जैसे ख़ुद से मैं फिसल गया,
हास्य रस से लिपटी तेरे छोटे से मुँह की बड़ी जिह्वा
तेरी सच-झूठी कहानी से बेचारा छल गया |

तेरी इन कातिल निगाहों से निशाना चल गया
सुर्ख नाजुक होंठों से जैसे मय का प्याला मिल गया,
धीमी-धीमी हवा में उडती जुल्फों पे मेरा दिल गया
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |

तुमसे किस तरह बोलूं, किस तरह मैं प्यार दूँ ?
किन शब्दों को बिछाऊँ, क्या ख़ुशी मैं वार दूँ ?
दिल के सपने देख मेरे मुझपे हँस ये पल गया
लाचार इस प्राणी को कैसे हर पहर ही छल गया |

मंजिल तलक पहुँचा सकी ना राह जिस पर चल गया
बढ़ा था मैं ख़ुशी लेने, आँसुओं में मिल गया,
जिसकी कभी थी ना जरूरत क्यों वही मिल फल गया ?
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |

ख़ूबसूरत बनाना तुझे ईश्वर की बड़ी कोई साजिश है
हकीकत की बात छोड़ो प्रिये, ख़्वाबों में जोर आजमाइश है,
रंग रूप में तू अनन्या, कहता ये मेरा दिल गया
तेरे होंठों की हाला में ये शराबी मिल गया |

संजोग से ही तू मुझे और मैं तुझे था मिल गया
मेरे गुलशन में भी तुझसा हसीं गुल था खिल गया,
कई वर्षों की तपस्या का मुझे मिल फल गया
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया ||

हाला – शराब




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