तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 9 December 2011

बेचैन दिल को फकत करार चाहिए !!!

इब्तिला हों  गयी बहुत अब जरा प्यार चाहिए ,

या खुदा बेचैन दिल को फकत करार चाहिए |

 

ये आँखे जगी हैं सारी उम्र उनके तस्सवुर में,

जो जग जाय खातिर मेरी, ऐसी अब्सार चाहिए |


सब हैं बेअसर से, ये सूरत, ये सीरत, ये समझ भी, 

जो जीत ले दिल उनका एक ऐसा हथियार चाहिये |


मिलती है गवाही तुफाँ की जमीदोज दरख्तों से,

फिर जीने का है अरमाँ महज नौबहार चाहिए |

या खुदा बेचैन दिल को फकत करार चाहिए ||



 
शब्दार्थ 
इब्तिला = दर्द, कष्ट
फकत = थोडा सा, मामुली
तसव्वुर= कल्पना, दिवास्वप्न
अब्सार = आँखें
सीरत = आदत, आंतरिक सौंदर्य
दरख़्त = पेड, वृक्ष
नौबहार = बसंत

-------------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"-----------------------------


 

Sunday 6 November 2011

तुम और मैं !!!

तुम हो चन्दा, मैं गगन हूँ,
तुम हो पानी, मैं पवन हूँ ।
तुम धरा हो, मैं वतन हूँ,
तुम मुहब्बत, मैं अमन हूँ ॥

तुम पलक हो, मैं नयन हूँ,
तुम हो सपना, मैं शयन हूँ ।
तुम हो पावक, मैं तपन हूँ,
तुम शरारा, मैं अगन हूँ ॥

तुम हो पीड़ा, मैं चुभन हूँ,
तुम अमानत, मैं अमन हूँ ।
तुम हो खुश तो मैं मगन हूँ,
बिन तुम्हारे मैं कफ़न हूँ ॥

[ काव्य-संग्रह "तिश्नगी" से ]


Friday 1 July 2011

भाई


पलकों से गिरता हर आँसू,
मुड़कर ये कहता है
कोई मेरा अपना भी,
ज़न्नत में रहता है ।।

यादें जिसकी पास मेरे और 
जिस्म पराया सा
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा,
तन्हाई सहता है ।।

सीखी जिससे रिश्तेदारी,
रस्मों की बुनियादें
वो खुद ही रिश्तों से अब,
मुँह फेरे रहता है ।।

सोच रहा था इस बार करूँगा,
गहरे राज की बातें  
क्या मालूम कि राज हमेशा,
राज ही रहता है ।।

मुझको जिस पर ऐतबार कुछ,
खुद से ज्यादा 'भाई'
होकर रुखसत राख - राख,
गंगा में बहता है
कोई मेरा अपना भी,
ज़न्नत में रहता है ।।

Monday 20 June 2011

उनकी मुस्कुराहट

मैं राह के इस तरफ
वो उस तरफ,
मैं उनसे नज़र मिलाता हूँ
वो भी नज़र मिलाती है,
फ़िर मुस्कुराती है
वाह ! क्या ग़जब ढाती है ।।

हवा के तेज झोंके से 
पत्ता जमीन पर गिरता है,
मैं पत्ते को उठाता हूँ
वो नज़र चुराती है,
फ़िर मुस्कुराती है 
वाह ! क्या ग़जब ढाती है ।।

उसकी तस्वीर बनाने को मैं
एक कलम उठाता हूँ,
वो जुल्फ़ें सँवार लेती है
जैसे हो तैयार इस चित्रकारी के लिये,
फ़िर मैं मुस्कुराता हूँ
फ़िर मुस्कुराती है
वाह ! क्या ग़जब ढाती है ।।

मैं उसे उसकी तस्वीर दिखाता हूँ
वो गुस्से से चिल्लाती है और,
और हसीं हो जाती है
फ़िर मुस्कुराती है 
वाह ! क्या ग़जब ढाती है ।।

मैं उससे मिलने को कदम बढ़ाता हूँ
वो भी खुश हो कदम बढ़ाती है,
तभी बीच में दुश्मन गाड़ी जाती है
और वो गाड़ी में चढ़ जाती है,
गाडी आगे बढ़ जाती है
मैं उदास, हताश, निराश हो जाता हूँ
तभी वो खिड़की से हाथ हिलाती है
मैं भी हाथ हिलाता हूँ,
फ़िर मुस्कुराता हूँ
फ़िर मुस्कुराती है
वाह ! क्या ग़जब ढाती है ।।