इब्तिला हों गयी बहुत अब जरा प्यार चाहिए ,
या खुदा बेचैन दिल को फकत करार चाहिए |
ये आँखे जगी हैं सारी उम्र उनके तस्सवुर में,
जो जग जाय खातिर मेरी, ऐसी अब्सार चाहिए |
सब हैं बेअसर से, ये सूरत, ये सीरत, ये समझ भी,
जो जीत ले दिल उनका एक ऐसा हथियार चाहिये |
मिलती है गवाही तुफाँ की जमीदोज दरख्तों से,
फिर जीने का है अरमाँ महज नौबहार चाहिए |
या खुदा बेचैन दिल को फकत करार चाहिए ||
शब्दार्थ
इब्तिला = दर्द, कष्ट
फकत = थोडा सा, मामुली
तसव्वुर= कल्पना, दिवास्वप्न
अब्सार = आँखें
सीरत = आदत, आंतरिक सौंदर्य
दरख़्त = पेड, वृक्ष
नौबहार = बसंत
-------------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"-----------------------------