तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Saturday 28 April 2012

राष्ट्र गौरव "राजीव दीक्षित"

तकरीबन ३ साल पहले 'फेसबुक' पर छोटा सा Video देखा था |  एक ओजपूर्ण भाषण देता हुआ युवक जो देश की स्वाधीनता के वक़्त की कुछ घटनाओं का जिक्र सतथ्य कर रहा था | उस वीडिओ में १९४७ के आसपास का जिक्र था और जिक्र था नेहरु की अकर्मण्यता का, गददारी का, गद्दी की लालसा का | उस वीडिओ में जिक्र था पटेल के देश प्रेम का, गाँधी की मजबूरी का | वो भाषण देने वाला युवक था "राजीव दीक्षित" |

३-४ दिन पहले फिर 'फेसबुक' के माध्यम से पता चला की वर्ष २०१० में  ४३ वर्ष की उम्र में राजीव जी की अप्रत्याशित मृत्यु हो गयी | मैं यह पढ़कर कुछ वक़्त के लिए सन्न सा रह गया | फिर मैंने कोशिश की राजीव जी के बारे में जानने की, समझने की और इस लेख के माध्यम से एक सच्चे देशभक्त को श्रधांजलि अर्पित करने की |

अजब दुखद संजोग है कि राजीव जी के जन्म और मृत्यु की तारीख एक ही है, ३० नवम्बर | उत्तर प्रदेश के अलीगढ में १९६७ में जन्मे राजीव IIT कानपुर से M.Tech हैं और फ्रांस से Doctorate | CSIR में वैज्ञानिक के पद को ठुकराकर राष्ट्र सेवा में कूदने वाले राजीव कांग्रेस पार्टी और भ्रष्ट राजनेताओं के गले कि घंटी बन चुके थे | राजीव जी "स्वदेशी अभियान" के जनक थे और देश भर में जन जागरूकता अभियान २ दशक से चलाते आ रहे थे | "भारत स्वाभिमान आन्दोलन" और "आजादी बचाओ अभियान" के जरिये राजीव जी देशवासियों को सदैव जागरूक करते रहे |

राजीव जी अनंत और अनमोल ज्ञान के भंडार थे | आपके निम्न विषयों पर भाषण इन्टरनेट पर उपलब्ध हैं :

  • भारत की विश्व को देन
  • भारत से हुई ऐतिहासिक  भूलें
  • भारत देश में गुलामी की निशानियाँ
  • भारत के सामाजिक एवं चारित्रिक पतन का षड़यंत्र
  • विदेशी कम्पनियों की लूट एवं स्वदेशी का दर्शन
  • मांसाहार से हानियाँ – ग्लोबल वार्मिंग
  • अंग्रेजी भाषा की गुलामी
  • भारत का सांस्कृतिक पतन
  • विषमुक्त कृषि
  • संस्कृत भाषा की वैज्ञानिकता
  • अंतरराष्ट्रीय संधियों के मकडजाल में फँसा भारत
  • व्यवस्था परिवर्तन की क्रांति
  • मौत का व्यापार – प्रतिबंधित, गैरज़रूरी ऐलोपैथिक दवाओं का व्यापार एवं ऑपरेशनों का अनावश्यक कुचक्र
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राजीव जी कि वेबसाइट http://www.rajivdixit.com/ से अनेकानेक महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं |

राजीव जी स्विस बैंकों में पड़े काले धन को राष्ट्रीय सम्पति घोषित करने का आग्रह "मुख्य न्यायालय" से कर चुके हैं |
राजीव जी अनेक बार हरिद्वार, उत्तराखंड आये और "स्वामी रामदेव" के साथ एक ही मंच से राष्ट्र के उत्त्थान का नारा लगाया | राजीव जी की शहादत के बाद उनकी याद में और उनके द्वारा शुरू किये गए अभियान को अनवरत रूप से चलाने के लिए हरिद्वार में "राजीव भवन" का निर्माण किया गया है | जब राजीव जी छतीसगढ़ में व्याखान के लिए गए तो अप्रत्याशित हालात में दुर्घटनाग्रस्त हो गए और विदेशी बहिष्कार का पालन अपनी अंतिम साँस तक करते रहे | राजीव जी ने विदेशी दवाये लेने से मना कर दिया और महज आयुर्वेदिक दवाये ली मगर कुदरत को कुछ और ही मंजूर था | राजीव जैसा रत्न,  भगत सिंह, चन्द्रशेखर और उधम सिंह से किसी मायने में कम नहीं है और सदैव हिन्दुस्तानियों के दिल और दिमाग में बसे रहेंगे !!!

 
राजीव जी के बारे में मेरा अध्ययन जारी है | आपसे विनती है की आप भी YouTube पर उपलब्ध VDOs को देखें और जाने इस महान हस्ती को, जो सच्चा देश भक्त था जो एक पाक सपना लेकर पञ्च-तत्व में लीन हो गया ||

Sources:
http://www.youtube.com/watch?v=_C6hlKMNH4k 

जय हिंद !!!

Sunday 8 April 2012

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माना कि मेरी शक्ल में तुम्हें मवाल दिखता है,
हर मौसम में मेरा बुरा हाल दिखता है |
और जब से की है तुमने बेवफाई मुझसे 'ऐ खुदा',
हर हसीं सूरत के पीछे जाल दिखता है ||

-------------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"-----------------------------
 


संजोग



आज फिर छाया अँधेरा, दिन दीवाना टल गया
मैं भी अपनी खाट पर आकर थका सा ढल गया,
थामकर उंगली में तेरे नाम की ये लेखनी
मैं अँधेरी रात में बारूद सा ही जल गया |

क्यों तेरी मुस्कान से एक बीज दिल में पल गया
कब कहाँ कैसे ये मोती, हार में बदल गया,
ख़्वाबों में पाने को तुझे क्यों मन मेरा मचल गया
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |

देखकर जब हुस्न तेरा दिल मेरा पिघल गया
छूकर तेरी बाँहों को जैसे ख़ुद से मैं फिसल गया,
हास्य रस से लिपटी तेरे छोटे से मुँह की बड़ी जिह्वा
तेरी सच-झूठी कहानी से बेचारा छल गया |

तेरी इन कातिल निगाहों से निशाना चल गया
सुर्ख नाजुक होंठों से जैसे मय का प्याला मिल गया,
धीमी-धीमी हवा में उडती जुल्फों पे मेरा दिल गया
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |

तुमसे किस तरह बोलूं, किस तरह मैं प्यार दूँ ?
किन शब्दों को बिछाऊँ, क्या ख़ुशी मैं वार दूँ ?
दिल के सपने देख मेरे मुझपे हँस ये पल गया
लाचार इस प्राणी को कैसे हर पहर ही छल गया |

मंजिल तलक पहुँचा सकी ना राह जिस पर चल गया
बढ़ा था मैं ख़ुशी लेने, आँसुओं में मिल गया,
जिसकी कभी थी ना जरूरत क्यों वही मिल फल गया ?
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |

ख़ूबसूरत बनाना तुझे ईश्वर की बड़ी कोई साजिश है
हकीकत की बात छोड़ो प्रिये, ख़्वाबों में जोर आजमाइश है,
रंग रूप में तू अनन्या, कहता ये मेरा दिल गया
तेरे होंठों की हाला में ये शराबी मिल गया |

संजोग से ही तू मुझे और मैं तुझे था मिल गया
मेरे गुलशन में भी तुझसा हसीं गुल था खिल गया,
कई वर्षों की तपस्या का मुझे मिल फल गया
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया |
रौशनी को किया दीपक पर मेरा घर जल गया ||

हाला – शराब




Saturday 7 April 2012

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हम तो लड़ते रहे कुदरत से तुम्हें पाने में,
तुमने भी बुना खूब जाल हमें फ़साने में |
और क्यों ना हो दर्द शायरी में इस कदर,
जब दिल ही मजबूर है इसे रख पाने में ||

------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"---------------------

गजल / अश्कों में कटी रात बात क्या है !

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अश्कों में कटी रात बात क्या है,
क्यों हो तन्हा ये जज्बात क्या है |


कौन होगा जो तुम्हे याद करे 'ऐ दिल'
किसी हसी के आगे तेरी औकात क्या है |


इश्क तो इश्क ही है फिर सरहद कैसी, 
उनका बस एक सवाल की तेरी जात क्या है |


कर भी लेंगे जो तौबा घर से उनकी खातिर,
कल वो फिर कह देंगे चलो घर "हैदराबाद" क्या है |
अश्कों में कटी रात बात क्या है ||
-------------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" ----------------------------

Friday 6 April 2012

"पहली बार"


पहली बार जब वो मेरे सीने से लिपटी,
सदियों से दिल में बने जख्म भर गये |
गंगा का तेज बहाव शान्त हो गया 
सूरज की किरणे हमारे आगे ठंडी पड़ गयी 
हमें सदियों तक दूर रखने वाली ये वैरी रातें ताकती रह गयी 
पेड़ से गिरा पत्ता जमीं पर गिरते-गिरते थक गया 
वक़्त थम सा गया 
आसमाँ का मुंह खुला का खुला रह गया 
चंदा की आँखें फट सी गयी
हवा हमें छूकर पार हो गयी
बादल भूले से बरस गये 
भौंरा पंखुड़ी में ही कैद होकर रह गया 
दो परिंदों ने फलक को चूम लिया
धरती माँ के कोमल आँचल ने हमें ढक लिया
और हम हमेशा के लिए एक-दूजे में खो गये | 
एक - दूजे के हो गये || 
----------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" -------------------------


फागुन की पूनम !

फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है

सूरजमुखी तके न सूरज
इन्द्रधनुष बेरंग हो जाये
सब पंछी लौटें घर को पर
होली आयी, पिया न आये । 

तनातनी की हालत है, सीमा पर मौसम मैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।

मुल्क, मुल्क सा नहीं रहा
अब रंग, रंग सा नहीं रहा
पिचकारी उगले जहरीला
पानी, पानी सा नहीं रहा ।

आज स्वाद गुझिया का कितना तीखा और कसैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।

सरहद पर जब बरसी गोली
कैसा फागुन, कैसी होली
सर उखाड़कर साथ ले गयी
दुष्ट 'पाक' आतंकी टोली ।

आँचल 'वीर' की विधवा का, रो-रोकर मटमैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।

                                                                     - शीष नैथानी 'लिल'  

क़त्ल-ए-मुहब्बत |

वो कहते हैं कि
हमें उनसे प्यार था
उनका ज़वाब इनकार था,
इसीलिये क़त्ल कर आये ।

मैं बोला,
दोस्त, तुम लाज़वाब हो
दुनिया का अजूबा हो
अन्धा आफ़ताब हो ।

तुम मुहब्बत का क़त्ल कर आये
तुम आशिक नहीं,
आशिक से बढ़कर हो ।
सच कहूँ, तुम जानवर हो
जंगली जानवर ।

[ काव्य-संग्रह - "तिश्नगी" से ]

Wednesday 4 April 2012

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मेरे हाथ में है गंगाजल, तेरे हाथ में शराब है,
मैं हो गया अमावास और वो माहताब है |
उनकी नजर उठी तो अदा-ए-हुस्न हो गयी,
और उठ गयी जो मेरी नजर तो नजर ख़राब है ||

-----------"आशीष नैथानी"/ "गढ़वाल"------------

Monday 2 April 2012

घर ना जलाइये साहब |


कभी मिलने-मिलाने के बहाने घर पर आइये साहब |
कुछ दुखड़े हमसे सुनिये, कुछ अपने सुनाइये साहब ||


वो बच्चे का फडफडाना दिल में और अश्कों में दबा लेना,
नाजुक है उमर फिर से उंगली बढाइये साहब |


लग जाती हैं सदियाँ बहुत एक रिश्ते को पाने में,
माना की हो गयी गलती मगर रिश्ता ना भुलाइये साहब |


और वो अब तलक ना सोयी होगी मैं जानता हूँ मेरे तसव्वुर में " माँ ",
देखे हैं कई सावन उसने, अब सीने से लगाइये साहब |


जला ना सको मोहब्बत का दिया जो घर में तो जरुरी भी नहीं,
बड़ी मुश्किल से बनता है घर, घर ना जलाइये साहब |


है ये सम्भव आपकी मुस्कुराहट से कोई खिलखिला उठे,
किसी अन्जान-अपने की खातिर यूँ ही मुस्कुराइये साहब |
कुछ दुखड़े हमसे सुनिये, कुछ अपने सुनाइये साहब ||
------------------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" ------------------------------


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मोहब्बत करते हो तो छुपाते क्यों हो ?
हो जाय खता तो बताते क्यों हो ?
तुम भी मिट्टी से बने हो और मैं भी हूँ खाक का,
जलते हो जख्मों से तो जलाते क्यों हो ??

------------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"---------------------------

Sunday 1 April 2012

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हर किसी को मिलती है किये की सजा |
किसी को मोहब्बत,
किसी को हिकारत,
किसी को क़ज़ा,
हर किसी को मिलती है किये की सजा |
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छंट गया रात का कालापन और गले मिली परछाई,
दूर किसी झुरमुट से रोशन बाला दिल में आई |
कुछ अधरों पर हँसी लिए और कुछ रख तोहफे में,
वो नादाँ तपस्वी के घर पैदल मिलने आयी ||

--------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" ----------------------

गजल / अपने दिल को समंदर बना रहा हूँ मैं


अपने दिल को समंदर बना रहा हूँ मैं,

खुद से कुछ राज छुपा रहा हूँ मैं |


मिल न सकी मेरी गजल से मौशिकी उनकी,

फिर भी बर्षात में बेफिक्र गा रहा हूँ मैं |


था जलजला ऐसा की ढह गयी इमारत दिल की,

किसी जलजले का 'निशाना' सजा रहा हूँ मैं |


पढ़ न ले राज कोई उनके मेरी आंखों में,

यही सबब की आजकल 'चश्मा' लगा रहा हूँ मैं |


उनकी खामोश जुबां हो मुकम्मल ख़त जैसे,

कोरा पैगाम भी पढ़ते जा रहा हूँ मैं |

खुद से कुछ राज छुपा रहा हूँ मैं || 


---------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" -------------

"गजल"

पलकों से गिरता हर आँसू मुडकर ये कहता है,
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है |

यादें तेरी पास मेरे और जिस्म पराया सा,
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा, तन्हाई सहता है |

सीखी जिससे रिश्तेदारी, रश्मों की बुनियादें,
वो खुद ही रिश्तों से अब मुँह फेरे रहता है |

सोच रहा था, इस बार करूंगा राज की बातें,
क्या मालूम कि राज हमेशा राज ही रहता है |

मुझको जिस पर एतबार कुछ खुद से ज्यादा "भाई",
होकर रुखसत राख-राख गंगा में बहता है |
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है ||

--------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" ----------------------

मेरा नन्हा देश


हाथों में लिये छेनी और छोटी सी हथौड़ी,

या उठाने की कोशिश किसी बड़े पत्थर को |

बस आठ-दस बरस में मिट्टी में घुलता संसार,

यही मेरा नन्हा सा देश, यही मेरा नन्हा सा प्यार ||  


कोई कूड़े के ढेर से बीनता खाली बोतलें,

तो कोई मूंगफली की ठेली पर तपता दिनभर,

कोई जूठे बर्तन मलकर भी खाता दुत्कार,

यही मेरा नन्हा सा देश, यही मेरा नन्हा सा प्यार ||  


कहीं हाथों में कटोरा लिये दर-दर भटकता बचपन,

कोई कंक्रीट के ढेर पर लिये माटी से चुम्बन |

कही कारखाने में जिंदगी को करता आर-पार,

यही मेरा नन्हा सा देश, यही मेरा नन्हा सा प्यार ||  


कहीं खुद नादाँ किसी नादाँ की हिफाजत करता,

कहीं तुलसी की माला बेच खुदा की जियारत करता |

जिंदगी खींचने को भूला खुद को, घर परिवार,

यही मेरा नन्हा सा देश, यही मेरा नन्हा सा प्यार ||  


छोटी सी आँखे मैली, मैला-मैला सा जामा,

छोटे से तन्हा दिल में बड़े खाबों का हंगामा |

कोई नहीं है ऐसा जो दे इन सपनों को भी आकार,

यही मेरा नन्हा सा देश, यही मेरा नन्हा सा प्यार |

यही मेरा नन्हा सा देश, यही मेरा नन्हा सा प्यार ||  

----------------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"----------------------------   

मंजिल और मुसाफिर


दो राहें हैं जीवन के हर एक सफ़र में

दिखते हैं संगत हर एक नजर में

एक है ख़ुशी एक में ग़मों का बसेरा

एक में है सवेरा तो एक में अँधेरा

सही रास्ते को तु चुन ऐ मुसाफिर !

लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!



जाना बहुत दूर तुझको है राही

राहों के कंटक भी देंगे गवाही

शूलों की ना तू परवाह कर अब

यही तो हैं पथ के सच्चे सहारे

इन्ही से सहारा तू ले अब मुसाफिर !

लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!



जेहन में रख मत फूलों की बातें

मखमली यादें और चांदनी रातें

आगे है मंजिल तेरा निशाना

जहाँ ना लगेगा कोई बेगाना

मंजिल को तू कसकर पकड़ ले मुसाफिर !

लौटना पड़े ना यहाँ से तुझे फिर !!