तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 27 December 2015

'मिर्ज़ा ग़ालिब' के २१८वें जन्मदिवस पर

इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा !
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं ||

मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
तू देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे ||

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी, कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले ||

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ||

मेहरबाँ हो के बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फिर आ भी न सकूँ ||

उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक 
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है ||

उधर वो बद-गुमानी है, इधर ये ना-तवानी है 
न पूछा जाए है उससे, न बोला जाए है मुझसे ||

कब वो सुनता है कहानी मेरी 
और फिर वो भी जबानी मेरी ||

क़ासिद के आते-आते ख़त इक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में ||

कोई वीरानी सी वीरानी है 
दश्त को देखके घर याद आया ||

ग़ालिब छुटी शराब पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र औ शब-ए-माहताब में ||

- ग़ालिब !!














Mirza Ghalib !
(Painting/Sketch by : Ashish Naithani)

Friday 4 December 2015

तेरी गली से लौटके जाना पड़ता है

तेरी गली से लौटके जाना पड़ता है
हम दोनों के बीच ज़माना पड़ता है

प्यार-मुहब्बत इश्क़-ख़ुमारी के ख़ातिर
मन्दिर-मस्ज़िद शीष नवाना पड़ता है

जिस जानिब इक भीड़ चले दीवानों की
समझो उस जानिब मैख़ाना पड़ता है

सब पंछी उस आँगन में मँडराते हैं
जिस आँगन में आबोदाना पड़ता है

मर जाते हैं होंठों के सारे अल्फ़ाज़
अपनों को जब दर्द सुनाना पड़ता है

दिल बच्चा है, अक्सर बुनता है सपने
क़दमों को इक दिन थक जाना पड़ता है

- आशीष नैथानी !!

Thursday 3 December 2015

सबका साथ निभाता चल

सबका साथ निभाता चल
सबसे हाथ मिलाता चल

गर खामोशी साथ चले
लफ़्ज़ों को दुहराता चल

Wednesday 2 December 2015

चेन्नई में सैलाब

बारिशें बन्द हो जाएँ
सुख की धूप खिले
घर-घर में जल-भोजन पहुँचे
लोग स्वस्थ रहें
जीवन लौट आये पटरी पर
स्कूल खुलें, बच्चे स्कूल जाएँ
कामगार ऑफिस या अन्य कामों पर
सड़कें, प्लेटफॉर्म, एयरपोर्ट खुलें
समस्याओं के बादल छँटें
इसी दुआ के साथ !!

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