तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 6 April 2012

"पहली बार"


पहली बार जब वो मेरे सीने से लिपटी,
सदियों से दिल में बने जख्म भर गये |
गंगा का तेज बहाव शान्त हो गया 
सूरज की किरणे हमारे आगे ठंडी पड़ गयी 
हमें सदियों तक दूर रखने वाली ये वैरी रातें ताकती रह गयी 
पेड़ से गिरा पत्ता जमीं पर गिरते-गिरते थक गया 
वक़्त थम सा गया 
आसमाँ का मुंह खुला का खुला रह गया 
चंदा की आँखें फट सी गयी
हवा हमें छूकर पार हो गयी
बादल भूले से बरस गये 
भौंरा पंखुड़ी में ही कैद होकर रह गया 
दो परिंदों ने फलक को चूम लिया
धरती माँ के कोमल आँचल ने हमें ढक लिया
और हम हमेशा के लिए एक-दूजे में खो गये | 
एक - दूजे के हो गये || 
----------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" -------------------------


No comments:

Post a Comment