जाने कब कोई अपना हो जाता है
इक चेहरा दिल का टुकड़ा हो जाता है |
कभी-कभी घर में ऐसा हो जाता है
सबका एक अलग कमरा हो जाता है |
जज्बों की बाढ़ आती है पलभर और फिर
‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है |’
हँसी-ख़ुशी सब कुछ रहती है सपनों में
सुब्ह उठूँ तो सब कूड़ा हो जाता है |
बेटा जब रिश्तों की कद्र नहीं करता
सच तब कड़वे से कड़वा हो जाता है |
सहर नहीं होती तन्हाई की शब की
कभी-कभी मौसम को क्या हो जाता है |
याद कभी तो हाल समझ मेरे दिल का
यादों से इन्सां बूढ़ा हो जाता है |
आशीष नैथानी 'सलिल'
'लफ्ज़' तरही १३ से