तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday 30 November 2015

समय के बाद - सब कुछ खाक !!

एक महल था. महल से लगकर एक झोपड़ी थी.  झोपड़ी में एक बूढा रहता था जिसके पास एक खटिया, दो जोड़ी कपड़े और तीन मुर्गियाँ थी. महल में बहुत कुछ था.

हर रात की तरह उस रात सब सोये हुए थे. हवा चल रही थी और चाँद जग रहा था. झोपडी में आग लग गयी. बाँस की दीवारों से लेकर फूस की छत तक, सब जल गए. बूढ़े की आँख खुली तो मुर्गियों को बचा ले आया. झोपडी की आग महल तक पहुँच गयी और फिर...

अगली सुबह, मैदान पर राख के दो टीले मिले. एक बड़ा, एक छोटा. महल का मालिक और वह बूढा अगल-बगल खड़े थे. दोनों के तन पर एक जोड़ी कपड़े थे. मुर्गियाँ दाना खोज रही थी. महल-झोपडी की हकीकत हवा के साथ उड़ गयी. बड़े टीले से अब थी धुँआ रिस रहा था.

उस शाम, बूढ़े ने एक और झोपड़ी बना ली. बीड़ी से तौबा कर ली. महल का मालिक झोपड़ी के भीतर बूढ़े के बगल में सो गया.

                                       आशीष नैथानी | हैदराबाद | नवम्बर-३०/२०१५