तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday 22 June 2015

फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है

सूरजमुखी तके न सूरज
इन्द्रधनुष बेरंग हो जाये
सब पंछी लौटें घर को पर
होली आयी, पिया न आये

तनातनी की हालत है, सीमा पर मौसम मैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।

मुल्क, मुल्क सा नहीं रहा
अब रंग, रंग सा नहीं रहा
पिचकारी उगले जहरीला
पानी, पानी सा नहीं रहा

आज स्वाद गुझिया का कितना तीखा और कसैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।

सरहद पर जब बरसी गोली
कैसा फागुन, कैसी होली
सर उखाड़कर साथ ले गयी
दुष्ट 'पाक' आतंकी टोली

आँचल 'वीर' की विधवा का, रो-रोकर मटमैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।

आशीष नैथानी 'सलिल'
हैदराबाद