तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 6 April 2012

क़त्ल-ए-मुहब्बत |

वो कहते हैं कि
हमें उनसे प्यार था
उनका ज़वाब इनकार था,
इसीलिये क़त्ल कर आये ।

मैं बोला,
दोस्त, तुम लाज़वाब हो
दुनिया का अजूबा हो
अन्धा आफ़ताब हो ।

तुम मुहब्बत का क़त्ल कर आये
तुम आशिक नहीं,
आशिक से बढ़कर हो ।
सच कहूँ, तुम जानवर हो
जंगली जानवर ।

[ काव्य-संग्रह - "तिश्नगी" से ]

No comments:

Post a Comment