तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 14 June 2013

ग़ज़ल !!!

दवा से दर्द औ' दिल से वो इक चेहरा छुपाते हैं ।
वो कैसे हैं अदावत भी जो शिद्दत से निभाते हैं ॥

यही थी शर्त जीने की, कि फिर वापस न लौटेंगे ।
मगर सच ये कि वो अब भी ख़यालों में सताते हैं ॥  

हुआ अहसास इतना ही जो तोडा गुल को टहनी से ।
किसी की मुस्कुराहट को किसी का घर जलाते हैं ॥

पतंग उड़ती हवा में ज़िन्दगी की कटके गिरनी है ।
ये हमको देखना होगा, किसे कैसे बचाते हैं ॥

मुहब्बत में नसीब इतना हुआ तुमको 'सलिल' कहना ।
अजल की राह के काँटे भी अब मरहम लगाते हैं ॥

[[ अदावत - दुश्मनी,   अजल - मृत्यु ]]

आशीष नैथानी 'सलिल'... जून,५/२०१३ (हैदराबाद)










2 comments:

  1. वाह बेहद सुन्दर लाजवाब ग़ज़ल मित्रवर हार्दिक बधाई स्वीकारें.
    आपकी यह रचना कल शनिवार (15 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. बहुत-बहुत शुक्रिया भाई अरुण जी ।
    "ब्लॉग प्रसारण" अपने आप में अनोखा ब्लॉग है, वहाँ विचरण करके अच्छा लगा।

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