उन दिनों पहाड़े याद करना
मुझे दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता था,
पहाड़े सबसे रहस्यमयी चीज |
९ के पहाड़े से तो मैं हमेशा चमत्कृत रहा
वो मुझे अहसास दिलाता
एक सुसंस्कृत बेटे का
जो घर से बाहर जाकर भी
घर के संस्कार न भूले |
मैं देखता कि कैसे
६ के पहाड़े में आने वाली सँख्यायें
३ के पहाड़े में भी आती
मगर छोटे-छोटे क़दमों में,
मुझे लगता एक पिता
अपने बच्चे की कलाई थामे
१२, १८, २४ वाली धरती पर कदम रख रहा है
और बच्चा
६, ९, १२ वाली धरती पर,
पिता के दो क़दमों के बीच की दूरी
बच्चे के क़दमों की दूरी की दूनी रहती |
१० का पहाड़ा हुआ करता था मासूम
पहली पंक्ति में बैठने वाले बच्चे की तरह
जिसकी ऐनक नाक पर टिकी होती
जो बालों पर कड़वा तेल पोतकर आता
और बाल ख़राब होने पर बहुत रोता था |
१७ का पहाड़ा सबसे बिगड़ैल
गुण्डे प्रवृत्ति के छात्र की तरह |
शर्दियों में हम धूप में बैठकर गणित पढ़ते
बस्ते में रहती एक पट्टी पहाड़ा
जिसे हम रटते रहते,
मौखिक परीक्षा में १९ का पहाड़ा पूछा जाता
सुनाने पर पूरे २० अंक मिलते |
कभी-कभी नगर में पहाड़ा प्रतियोगिता होती
मैं २५ तक पहाड़े याद करता
और देखता कि कुछ बच्चों को ४२ का भी पहाड़ा याद है,
हालाँकि समय गुजरते उन्हें भी २५ तक ही ठीक से पहाड़े याद रहते |
मुझे २५ के पहाड़े से अगाध प्रेम रहा
जो बरकरार है |
उन दिनों
पहाड़ों की गुनगुनी धूप में
पहाड़े याद करना
जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी |
सोचता हूँ फिर से वे दिन मिल जाएँ
फिर से मिल जाय पीठ पर हाथ फेरती गुनगुनी धूप
मास्टर जी की डाँट,
अबकी बार इन चुनौतियों के बदले
मैं भी ४२ तक पहाड़े याद कर लूँगा
कभी न भूलने के लिये |
मुझे दुनिया का सबसे मुश्किल काम लगता था,
पहाड़े सबसे रहस्यमयी चीज |
९ के पहाड़े से तो मैं हमेशा चमत्कृत रहा
वो मुझे अहसास दिलाता
एक सुसंस्कृत बेटे का
जो घर से बाहर जाकर भी
घर के संस्कार न भूले |
मैं देखता कि कैसे
६ के पहाड़े में आने वाली सँख्यायें
३ के पहाड़े में भी आती
मगर छोटे-छोटे क़दमों में,
मुझे लगता एक पिता
अपने बच्चे की कलाई थामे
१२, १८, २४ वाली धरती पर कदम रख रहा है
और बच्चा
६, ९, १२ वाली धरती पर,
पिता के दो क़दमों के बीच की दूरी
बच्चे के क़दमों की दूरी की दूनी रहती |
१० का पहाड़ा हुआ करता था मासूम
पहली पंक्ति में बैठने वाले बच्चे की तरह
जिसकी ऐनक नाक पर टिकी होती
जो बालों पर कड़वा तेल पोतकर आता
और बाल ख़राब होने पर बहुत रोता था |
१७ का पहाड़ा सबसे बिगड़ैल
गुण्डे प्रवृत्ति के छात्र की तरह |
शर्दियों में हम धूप में बैठकर गणित पढ़ते
बस्ते में रहती एक पट्टी पहाड़ा
जिसे हम रटते रहते,
मौखिक परीक्षा में १९ का पहाड़ा पूछा जाता
सुनाने पर पूरे २० अंक मिलते |
कभी-कभी नगर में पहाड़ा प्रतियोगिता होती
मैं २५ तक पहाड़े याद करता
और देखता कि कुछ बच्चों को ४२ का भी पहाड़ा याद है,
हालाँकि समय गुजरते उन्हें भी २५ तक ही ठीक से पहाड़े याद रहते |
मुझे २५ के पहाड़े से अगाध प्रेम रहा
जो बरकरार है |
उन दिनों
पहाड़ों की गुनगुनी धूप में
पहाड़े याद करना
जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी |
सोचता हूँ फिर से वे दिन मिल जाएँ
फिर से मिल जाय पीठ पर हाथ फेरती गुनगुनी धूप
मास्टर जी की डाँट,
अबकी बार इन चुनौतियों के बदले
मैं भी ४२ तक पहाड़े याद कर लूँगा
कभी न भूलने के लिये |
आशीष नैथानी
‘सलिल’
मार्च/२९/२०१४ (हैदराबाद)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (30-03-2014) को "कितने एहसास, कितने ख़याल": चर्चा मंच: चर्चा अंक 1567 पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद सर !! :)
Delete