होली के पावन दिवस, ऐसे उड़े अबीर |
हरिद्वार में चमक उठे, जैसे गंगा तीर ||
फागुन पूनम आ गयी, आया प्रिय त्यौहार |
रंग लिए घर से चले, बाल प्रौढ़ नर नार ||
बच्चों के रंगे हुए, लाल बैंगनी गाल |
काला गोरा सब रँगा, रंगारंग कमाल ||
तितली को तितली लगे, उस दिन पूरा गाँव |
रंग पहनकर जब चलें, बादल पानी छाँव ||
कभी-कभी ही दीखती, आँखों में मुस्कान |
कभी-कभी इन्सान से मिल पाता इन्सान ||
पानी की बौछार से, सिहरा पूरा गात |
सुबह-सुबह की ठण्ड में, हाय कुठाराघात ||
गुजिया की मीठी महक और ठंडाई भाँग |
रंगों के त्यौहार पर, बस इतनी सी माँग ||
पीस कोयला खेलता, होली मेरा गाँव |
निशा रूप में रँग गए, मुँह हाथ और पाँव ||
अधरों पर प्रिय गीत है, काँधे पर है ढोल |
पूनम के उजले दिवस, मीठे-मीठे बोल ||
सरसों गेहूँ बाजरा, जाने कितने रंग |
रंग प्रेम में माँ धरा, कितनी हुई मलंग ||
रंगों से खेला करे, एक कृषक परिवार |
वृहद धरा की थाल पर, धान बाजरा ज्वार ||
संस्कृति पर हावी हुआ, वैश्विकता का दौर |
होली को ऑफिस लगे, बम्बइ या बंगलौर ||
स्वर्ण रंग सा चमकता, आजादी का घाम |
सीमा पर मुश्तैद है, सैनिक ! तुझे सलाम ||
चाहे सूखी खेलिए या खेलें लठमार |
होली के पर्याय हैं, प्रीत प्रेम औ' प्यार ||
उप्पल से कोथागुड़ा, इधर खैरताबाद |
इंद्रधनुष बन झूमता मस्त हैदराबाद ||
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