तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday, 28 August 2017

हथेलियों पर चाँद !!

तुम अगर अपनी नर्म हथेलियों को मेरे रूखे हाथों में रखने का साहस कर सको
तो मैं तुम्हारी उन हथेलियों पर चाँद उगाने की कोशिश जरूर करूँगा

तुम अगर छाँव में बढ़ सको दो पग मेरी ओर
तो बाकी के असंख्य पग मैं धूप पर सवार होकर तय कर लूँगा

मैं नहीं जानता कि ये अनकहा रिश्ता हमें किस मोड़ पर छोड़ देगा
लेकिन कहीं दूर आकाशगंगा के किसी तारे में  ऐसी हलचल हो
कि हम दोनों का रास्ता हो जाए एक
तो मैं चिड़िया के घोंसले में रखी घास से नाजुक सपने बुनूँगा तुम्हारे लिए

तुम्हारी पलकों पर उग आई ओंस की बूँदों से मैं
इन्द्रधनुष पर जमी गर्द साफ़ कर लूँगा
और तुम्हारी मुस्कुराहट पर बिछा दूँगा तितलियों से सुनहरे पर

हमारी पलकें ऐसे बिंध जाएँ किसी रंगीन स्वप्न से
कि हमारी रूहें किसी बच्चे की पतंग पर बैठकर बादलों को छू लें

मुमकिन है कि मेरे शब्द कल बर्फ़ हो जाएँ
और तुम्हारे स्वप्न देहमुक्त
तो क्यों न हम आज ही बंध जाएँ एक-दूसरे की उँगलियों से
कि हर रोज़ झील में नहीं उतरते तारे
कि हर रोज़ पेड़ नहीं गिराते फूल हमारे लिए
कि हर रोज़ हथेलियों पर नहीं उगा करते चाँद |

© आशीष नैथानी !!

अगस्त,२७/२०१७ 
(नई दुनिया, इंदौर)

5 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-08-2017) को "गम है उसको भुला रहे हैं" (चर्चा अंक-2712) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. दार्शनिक विचार ,आपकी रचना अत्यंत सराहनीय है शुभकामनाओं सहित ,आभार ''एकलव्य"

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