पठारों पर उग आई हैं इमारतें
जैसे तुम्हारी उदासी पे
कभी-कभार मुस्कुराहट उभर आती है
पुराने शहर की कुछ पुरानी इमारतों पर
घास उग आई है,
और उग आई हैं
पंछियों के घोंसलों की सम्भावनाएँ भी
जीवन की उम्मीदों का इस तरह उगना
शहर की साँसों के लिए जरुरी है,
जैसे प्रेम हमारी साँसों के लिए |
© आशीष नैथानी !!
जैसे तुम्हारी उदासी पे
कभी-कभार मुस्कुराहट उभर आती है
पुराने शहर की कुछ पुरानी इमारतों पर
घास उग आई है,
और उग आई हैं
पंछियों के घोंसलों की सम्भावनाएँ भी
जीवन की उम्मीदों का इस तरह उगना
शहर की साँसों के लिए जरुरी है,
जैसे प्रेम हमारी साँसों के लिए |
© आशीष नैथानी !!
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