मैं अभी अपना ही किरदार न समझा ढंग से
मैं किसी और का किरदार निभाऊँ कैसे !!
सारी रात ख़ुमारी थी
चाँद की पहरेदारी थी
फ़िर नींदों ने ख़्वाबों में
तेरी शक्ल उतारी थी
बहुत नाजुक सा रिश्ता है हमारा
ये कट सकता है मक्खन की छुरी से !!
बहुत आसान समझा था मुहब्बत
मगर आसान तो कुछ भी नहीं है !!
यहाँ न सुब्ह की रौनक, न साँझ की खुशबू
मैं अपनी रूह पहाड़ों में छोड़ आया हूँ !!
© आशीष नैथानी !!
मैं किसी और का किरदार निभाऊँ कैसे !!
सारी रात ख़ुमारी थी
चाँद की पहरेदारी थी
फ़िर नींदों ने ख़्वाबों में
तेरी शक्ल उतारी थी
बहुत नाजुक सा रिश्ता है हमारा
ये कट सकता है मक्खन की छुरी से !!
बहुत आसान समझा था मुहब्बत
मगर आसान तो कुछ भी नहीं है !!
यहाँ न सुब्ह की रौनक, न साँझ की खुशबू
मैं अपनी रूह पहाड़ों में छोड़ आया हूँ !!
© आशीष नैथानी !!
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