डायरी पर लफ्ज़ उतरे तेरे घर जाने के बाद
और भी वीरानियाँ हैं दिल के वीराने के बाद |
ऐसे सच को सच की नजरों से भला देखेगा कौन
सामने जो आएगा अखबार छप जाने के बाद |
जिद कहें बच्चों की या फिर कह लें हम मासूमियत
खेल खेलेंगे उसी मिट्टी में समझाने के बाद |
ज़िन्दगी बस दो सिरों के बीच फँसकर रह गयी
तीसरी भी हो जगह घर और मैखाने के बाद |
छोड़ दें ढीला न यूँ रिश्तों को अब उलझाएँ हम
रस्सियाँ सुलझी नहीं टूटी हैं उलझाने के बाद |
आपके इस शहर में हासिल हुआ ये तज्रिबा
रास्तों पर बुत मिले हर ओर बुतखाने के बाद |
सुब्ह भी होती रही औ' दर्द भी जाता रहा
'शम्अ भी जलती रही परवाना जल जाने के बाद |'
जाइये उजड़े घरों में फिर से गेरू पोतिये
लौटकर है फायदा क्या उम्र ढह जाने के बाद |
आशीष नैथानी 'सलिल'
अगस्त,३०/२०१४ (हैदराबाद)
ऐसे सच को सच की नजरों से भला देखेगा कौन
सामने जो आएगा अखबार छप जाने के बाद |
जिद कहें बच्चों की या फिर कह लें हम मासूमियत
खेल खेलेंगे उसी मिट्टी में समझाने के बाद |
ज़िन्दगी बस दो सिरों के बीच फँसकर रह गयी
तीसरी भी हो जगह घर और मैखाने के बाद |
छोड़ दें ढीला न यूँ रिश्तों को अब उलझाएँ हम
रस्सियाँ सुलझी नहीं टूटी हैं उलझाने के बाद |
आपके इस शहर में हासिल हुआ ये तज्रिबा
रास्तों पर बुत मिले हर ओर बुतखाने के बाद |
सुब्ह भी होती रही औ' दर्द भी जाता रहा
'शम्अ भी जलती रही परवाना जल जाने के बाद |'
जाइये उजड़े घरों में फिर से गेरू पोतिये
लौटकर है फायदा क्या उम्र ढह जाने के बाद |
आशीष नैथानी 'सलिल'
अगस्त,३०/२०१४ (हैदराबाद)
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