तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday, 1 September 2014

अगस्त महीने की ग़ज़ल !

डायरी पर लफ्ज़ उतरे तेरे घर जाने के बाद
और भी वीरानियाँ हैं दिल के वीराने के बाद |

ऐसे सच को सच की नजरों से भला देखेगा कौन 
सामने जो आएगा अखबार छप जाने के बाद |

जिद कहें बच्चों की या फिर कह लें हम मासूमियत
खेल खेलेंगे उसी मिट्टी में समझाने के बाद |

ज़िन्दगी बस दो सिरों के बीच फँसकर रह गयी 
तीसरी भी हो जगह घर और मैखाने के बाद |

छोड़ दें ढीला न यूँ रिश्तों को अब उलझाएँ हम 
रस्सियाँ सुलझी नहीं टूटी हैं उलझाने के बाद |

आपके इस शहर में हासिल हुआ ये तज्रिबा 
रास्तों पर बुत मिले हर ओर बुतखाने के बाद |

सुब्ह भी होती रही औ' दर्द भी जाता रहा 
'शम्अ भी जलती रही परवाना जल जाने के बाद |'

जाइये उजड़े घरों में फिर से गेरू पोतिये
लौटकर है फायदा क्या उम्र ढह जाने के बाद |

                          आशीष नैथानी 'सलिल'
                       अगस्त,३०/२०१४ (हैदराबाद)


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