तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Saturday, 9 August 2014

ग़ज़ल !!

जाने कब कोई अपना हो जाता है
इक चेहरा दिल का टुकड़ा हो जाता है |

कभी-कभी घर में ऐसा हो जाता है
सबका एक अलग कमरा हो जाता है |

जज्बों की बाढ़ आती है पलभर और फिर
‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है |’

हँसी-ख़ुशी सब कुछ रहती है सपनों में
सुब्ह उठूँ तो सब कूड़ा हो जाता है |

बेटा जब रिश्तों की कद्र नहीं करता
सच तब कड़वे से कड़वा हो जाता है |

सहर नहीं होती तन्हाई की शब की
कभी-कभी मौसम को क्या हो जाता है |

याद कभी तो हाल समझ मेरे दिल का
यादों से इन्सां बूढ़ा हो जाता है |

                    आशीष नैथानी 'सलिल'
                    'लफ्ज़' तरही १३ से

14 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनायें।

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया राजेन्द्र जी !
      राखी की शुभकामनाएं !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (11-08-2014) को "प्यार का बन्धन: रक्षाबन्धन" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1702 पर भी होगी।
    --
    भाई-बहन के पवित्र प्रेम के प्रतीक
    पावन रक्षाबन्धन पर्व की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया डॉ. मयंक जी !
      रक्षाबंधन की शुभकामनाएं !

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  3. वाह बहुत उम्दा।

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  4. बहुत ही उम्दा ग़ज़ल ... हर शेर हकीकत लिए हुए ...

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया दिगंबर जी !

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  5. बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल...सभी अशआर दिल को छूते हुए...

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया कैलाश जी !

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ !

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    1. शुक्रिया प्रतिभा जी !
      रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएं !!

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  7. उम्दा ... जीवन का कड़वा सच .. मीठे सुर में :)

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    1. सराहना हेतु शुक्रिया सुनीता जी !

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