शहर भर का दर्द पीना चाहता हैं
शख़्स कैसा है ये जीना चाहता है |
इत्र से मजदूर का रिश्ता भी कैसा
जो महज बहता पसीना चाहता है |
तीरगी के इस समन्दर में मुसाफ़िर
रौशनी का इक सफ़ीना चाहता है |
इस सियासत में बहुत पत्थर भरे हैं
मुल्क अब कोई नगीना चाहता है |
- आशीष नैथानी सलिल
पुष्पक - अंक २४ (हैदराबाद) से २०१३ में प्रकाशित
शख़्स कैसा है ये जीना चाहता है |
इत्र से मजदूर का रिश्ता भी कैसा
जो महज बहता पसीना चाहता है |
तीरगी के इस समन्दर में मुसाफ़िर
रौशनी का इक सफ़ीना चाहता है |
इस सियासत में बहुत पत्थर भरे हैं
मुल्क अब कोई नगीना चाहता है |
- आशीष नैथानी सलिल
पुष्पक - अंक २४ (हैदराबाद) से २०१३ में प्रकाशित
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