तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Saturday 9 August 2014

एक ग़ज़ल !!

शहर भर का दर्द पीना चाहता हैं
शख़्स कैसा है ये जीना चाहता है |

इत्र से मजदूर का रिश्ता भी कैसा
जो महज बहता पसीना चाहता है |

तीरगी के इस समन्दर में मुसाफ़िर
रौशनी का इक सफ़ीना चाहता है |

इस सियासत में बहुत पत्थर भरे हैं
मुल्क अब कोई नगीना चाहता है |

- आशीष नैथानी सलिल
पुष्पक - अंक २४ (हैदराबाद) से २०१३ में प्रकाशित 

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