मुंसिफ़ों ने नहीं
पूछी मेरी इच्छा
मुझसे
जाने किस बात
से नाराज़ है
दुनिया मुझसे |
नौकरी छूटी तो
फिर देर से
घर आने लगा
डर था माँगे
न खिलौना मेरा
बच्चा मुझसे |
रंग गिरना है हवेली
का भी अबके
सावन
गुफ़्तगू में कहे
आषाढ़ महीना मुझसे
|
हिज़्र की रात
मेरे साथ ग़ज़ब
और हुआ
रौशनी माँग रहा
था जो अँधेरा
मुझसे |
खर्च कर दे
मुझे तू अपने
लिए चैन कमा
कह गया जेब
का वो आख़िरी
सिक्का मुझसे |
मेरे होंटों को मिला
लफ्ज़ न उस
वक़्त कोई
मेरे दुश्मन ने मेरा
हाल जो पूछा
मुझसे |
ज़िन्दगी तेरे सिवा
किससे तआरुफ़ मेरा
और तू ही
कहे तू कौन
है मेरा, मुझसे
|
इतने दुख इतने
मसाइल हैं निजी
जीवन में
किसको फ़ुर्सत है करे
मुल्क का चर्चा
मुझसे |
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