बारिश में भीगे पेड़ों की कुछ शाख़ों से
झूल रही है शाम
शाम, कि जिसने बादल के झुमके पहने हैं
शाम, कि जिसने बूँदों से बाँधा है जूड़ा
और जिसके पैरों को झील का पानी ऐसे रंगता है
गोया दुल्हन के पैरों पे महावर
शाम कि जो मेरी खिड़की के पास सजी है
और दूर किसी बिल्डिंग के पन्द्रहवें माले पर
उग आया है चाँद
चाय का प्याला टेबल में रख
मैं कागज़ पर कुछ लफ़्ज़ों से
तेरा चेहरा बनाने की कोशिश में हूँ,
तेरे इस चेहरे को मैंने नाम दिया है 'शाम' !
अब भी बारिश रूह की सूरत बरस रही है
तुम जीवन के इक गाने पर नाच रही हो
अक्सर ऐसा होता है,
मैं दिन से लड़-लड़कर तुझ तक आता हूँ
पर इक तू है जो मुझको भूल रही है शाम,
अब भी बारिश में भीगे पेड़ों की
कुछ शाखों से झूल रही है शाम |
~ आशीष नैथानी !!
झूल रही है शाम
शाम, कि जिसने बादल के झुमके पहने हैं
शाम, कि जिसने बूँदों से बाँधा है जूड़ा
और जिसके पैरों को झील का पानी ऐसे रंगता है
गोया दुल्हन के पैरों पे महावर
शाम कि जो मेरी खिड़की के पास सजी है
और दूर किसी बिल्डिंग के पन्द्रहवें माले पर
उग आया है चाँद
चाय का प्याला टेबल में रख
मैं कागज़ पर कुछ लफ़्ज़ों से
तेरा चेहरा बनाने की कोशिश में हूँ,
तेरे इस चेहरे को मैंने नाम दिया है 'शाम' !
अब भी बारिश रूह की सूरत बरस रही है
तुम जीवन के इक गाने पर नाच रही हो
अक्सर ऐसा होता है,
मैं दिन से लड़-लड़कर तुझ तक आता हूँ
पर इक तू है जो मुझको भूल रही है शाम,
अब भी बारिश में भीगे पेड़ों की
कुछ शाखों से झूल रही है शाम |
~ आशीष नैथानी !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (30-07-2017) को "इंसान की सच्चाई" (चर्चा अंक 2682) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी !
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया ओमकार जी !
Deletemajedar lagi aapki rachnayen..
ReplyDeleteशुक्रिया शारदा जी !
Deleteबेहतरीन कल्पना
ReplyDeleteशुक्रिया गगन जी :)
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