वफ़ा कीजै या फ़िर जफ़ा कीजै
इश्क़ में कुछ न कुछ नया कीजै।
बुरा कीजै या फिर भला कीजै
रस्म जीवन की है, अदा कीजै।
कागजों का न दम निकल जाए
रोशनाई न यूँ रँगा कीजै।
ग़म कोई उम्र भर नहीं रहता
थोडा-थोडा सही, हँसा कीजै।
तितलियाँ बाग़-बाग़ उड़ती हैं
तितलियाँ हैं जनाब, क्या कीजै।
इश्क़ में कुछ न कुछ नया कीजै।
बुरा कीजै या फिर भला कीजै
रस्म जीवन की है, अदा कीजै।
कागजों का न दम निकल जाए
रोशनाई न यूँ रँगा कीजै।
ग़म कोई उम्र भर नहीं रहता
थोडा-थोडा सही, हँसा कीजै।
तितलियाँ बाग़-बाग़ उड़ती हैं
तितलियाँ हैं जनाब, क्या कीजै।
ग़म कोई उम्र भर नहीं रहता , थोडा ही सही हँसा कीजिये !
ReplyDeleteबहुत खूब !
सुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना। कभी यहाँ भी पधारें।
ReplyDeleteसादर मदन
http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
http://saxenamadanmohan.blogspot.in/
भाई अरुण जी, वाणी गीत जी, मदन-मोहन जी....
ReplyDeleteआप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !!!
सुंदर रचना के लिए आपको बधाई
ReplyDeleteसंजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.com