तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 4 August 2013

ग़ज़ल !!!

वफ़ा कीजै या फ़िर जफ़ा कीजै
इश्क़ में कुछ न कुछ नया कीजै।

बुरा कीजै या फिर भला कीजै
रस्म जीवन की है, अदा कीजै।

कागजों का न दम निकल जाए
रोशनाई न यूँ रँगा कीजै।

ग़म कोई उम्र भर नहीं रहता
थोडा-थोडा सही, हँसा कीजै।

तितलियाँ बाग़-बाग़ उड़ती हैं
तितलियाँ हैं जनाब, क्या कीजै।



4 comments:

  1. ग़म कोई उम्र भर नहीं रहता , थोडा ही सही हँसा कीजिये !
    बहुत खूब !

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  2. सुन्दर ,सटीक और प्रभाबशाली रचना। कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन
    http://saxenamadanmohan1969.blogspot.in/
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

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  3. भाई अरुण जी, वाणी गीत जी, मदन-मोहन जी....
    आप सभी का बहुत-बहुत शुक्रिया !!!

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  4. सुंदर रचना के लिए आपको बधाई

    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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