तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Saturday 14 December 2013

निवेश

 मैं निवेश कर रहा हूँ अपनी नींदें
तुम्हारे प्यार में,
नफा-नुकसान सोचे बगैर
यूँ भी मुहब्बत कोई सौदा तो नहीं |

मैं जानता हूँ कि वहाँ
तुमने भी जुगनुओं से कर ली होगी दोस्ती,
तारों से जान-पहचान हो चुकी होगी अब तक
और चाँद खिड़की पे बैठ मुस्कुराता रहता होगा |

सूरज की किरणें अखरोट के पेड़ पर चढ़कर
झाँकती होंगी तुम्हारे कमरे में,
और गौरैयों के गाने तुम्हारी नींद में दखल देते होंगे |

अब तो डाकिया भी चिठ्ठियाँ बाँटने में लापरवाही करता होगा,
फ़ोन रखने की सलाह देता होगा,
मगर तुम्हारी उस आदत का क्या
जो यादों को संजोये रखना चाहती है,
ख़त, पैगाम, चिट्ठियों के मार्फ़त |

विश्वास करो,
यहाँ मैं भी कमोबेश उसी हालत में हूँ
शहर की भीड़ में अकेला सा,
जैसे कई कागजों के बीच रह जाता है एक कागज़
दबा हुआ सा,
मुड़ा हुआ सा,
कागजों की तह बिगाड़ता हुआ |

तुम्हारे गाँव और मेरे शहर में
हम दोनों की हालत एक सी है,
एक टूटे हुए पत्ते की माफिक
जिसे इधर की हवा उधर और
उधर की हवा इधर उड़ाने का प्रयास करती है |

खैर...

सुनो ! पिछले हफ्ते भेजा है एक और ख़त मैंने
पढ़ना, सँभालकर रखना या फाड़ देना,
क्या पता किस काम आ जाये ये निरीह ख़त
हँसने-मुस्कुराने के,
अलाव तापने के या फिर
तुम्हारी आँखों की नमी हटाने के |

-- आशीष नैथानी 'सलिल'


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