तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Monday, 29 July 2013

फीकापन

एक लम्बी रात
जो गुजरती है तुम्हारे ख्वाब में,
तुम्हें निहारते हुए
बतियाते हुए
किस्से सुनते-सुनाते हुए ।

और जब ये रात ख़त्म होती है,
सूरज की किरणें
मेरे कमरे में बने रोशनदानों से
झाँकने लगती हैं,
मेरी नींद टूट जाती है तब ।

तुम्हारे ख्वाब के बाद
नींद का इस तरह टूट जाना,
महसूस होता है गोया
कि जायकेदार खीर खाने के बाद
कर दिया हो कुल्ला,
और मुँह में शेष रह गया हो
महज फीकापन ।













Tuesday, 23 July 2013

चाय का ठेला

मैं तब बे-रोकटोक चला जाता था
नुक्कड़ पर
२ रुपये की चाय पीने ।

कभी 'एक बटा दो' चाय भी पीनी पड़ी;
जब रास्ते में मिल जाता
कोई दोस्त-यार
तो चाय के हिस्से हो जाते,
कभी 'दो बटा तीन' भी ।

अब ऐसे किसी ठेले पर खड़ा होने में
महसूस होती है शर्म,
और लगा रहता है डर कि
कहीं कोई देख न ले,
कोई सहकर्मी या ड्राइवर,
चौकीदार या रसोईया,
कोई भी जान-पहचान वाला
देख लेगा तो क्या सोचेगा ?

बस इसी लाज-शर्म से
जाता हूँ किसी ऐसी जगह
जहाँ मिलती है मँहगी और बेस्वाद 'कॉफ़ी',
जिसे पीकर ऐसा मुँह बनाना होता है
कि,  वाह बहुत लजीज है ।
मगर सच तो ये है कि वो
नुक्कड़ के २ रूपए इन वातानुकूलित होटलों के
१०० रुपयों से कहीं अधिक स्वादिष्ट थे ।

फिर शायद वो जायका
लौटे न लौटे ।







Big Smileys

Saturday, 13 July 2013

धर्म

भारत में
हिन्दू और मुसलमान का रिश्ता
उतना ख़राब नहीं है
जितना कि
सियासत बताती है और
मीडिया दिखाती है ।

सच तो ये है कि
आम आदमी को इतना
समय ही नहीं मिलता;
वो तो व्यस्त है
अपनी रोजी-रोटी जुटाने में ।

इन बातों का समय सिर्फ उन्हें है
जिनकी रोजी-रोटी पकती है
धर्म के तवे पर ।


Thursday, 11 July 2013

"तिश्नगी" कैसे प्राप्त करें ?

मित्रों, तिश्नगी प्राप्त करने हेतु अपना पूरा पता ईमेल कर दें - 
ashish.naithani.salil@gmail.com


साथ ही इस नंबर पर सन्देश भेज दें 
9666 060 273



पुस्तक का नाम - तिश्नगी (काव्य-संग्रह)

कविताओं की संख्या - 51
पृष्ठ संख्या - 80

मूल्य - 110 (डाक खर्च सहित) 



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अकाउंट की जानकारी 
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ASHISH NAITHANI
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