तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Tuesday, 1 January 2013

मैं कवि नहीं हूँ !!!

मैं कवि नहीं हूँ
और ना ही जानता हूँ कुछ
अच्छा लिखना ।

मगर क्या करूँ ?
दिल के इस दर्द को कहाँ उड़ेलूँ  ?
और किसे सुनाऊँ अपना सुख-दुःख ?

घर से लेकर शहर तक,
अमृत से लेकर जहर तक,
और सृजन से लेकर कहर तक,
कुछ कहना चाहता हूँ,
सब कुछ कहकर भी मैं
चुप रहना चाहता हूँ ।

मैं नहीं रखता शौक शराब का
और ना ही है कोई मित्र करीबी
भावनायें बाँटने को ।


फिर लेकर टुकड़ा कागज़ का
और कलम,
बैठता हूँ छज्जे पर ।
सच में बड़ी तसल्ली मिलती है
एक बेदाग़ कागज़ पर
काली स्याही पोत देने से ।

आड़ी-तिरछी लकीरें खींच देता हूँ,
इसी कोशिश में कि
शायद कोई कविता बन पड़े ।



" नववर्ष की शुभकामनाओं सहित

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