मैं कवि नहीं हूँ
और ना ही जानता हूँ कुछ
अच्छा लिखना ।
मगर क्या करूँ ?
दिल के इस दर्द को कहाँ उड़ेलूँ ?
और किसे सुनाऊँ अपना सुख-दुःख ?
घर से लेकर शहर तक,
अमृत से लेकर जहर तक,
और सृजन से लेकर कहर तक,
कुछ कहना चाहता हूँ,
सब कुछ कहकर भी मैं
चुप रहना चाहता हूँ ।
मैं नहीं रखता शौक शराब का
और ना ही है कोई मित्र करीबी
भावनायें बाँटने को ।
फिर लेकर टुकड़ा कागज़ का
और कलम,
बैठता हूँ छज्जे पर ।
सच में बड़ी तसल्ली मिलती है
एक बेदाग़ कागज़ पर
काली स्याही पोत देने से ।
आड़ी-तिरछी लकीरें खींच देता हूँ,
इसी कोशिश में कि
शायद कोई कविता बन पड़े ।
" नववर्ष की शुभकामनाओं सहित "
और ना ही जानता हूँ कुछ
अच्छा लिखना ।
मगर क्या करूँ ?
दिल के इस दर्द को कहाँ उड़ेलूँ ?
और किसे सुनाऊँ अपना सुख-दुःख ?
घर से लेकर शहर तक,
अमृत से लेकर जहर तक,
और सृजन से लेकर कहर तक,
कुछ कहना चाहता हूँ,
सब कुछ कहकर भी मैं
चुप रहना चाहता हूँ ।
मैं नहीं रखता शौक शराब का
और ना ही है कोई मित्र करीबी
भावनायें बाँटने को ।
फिर लेकर टुकड़ा कागज़ का
और कलम,
बैठता हूँ छज्जे पर ।
सच में बड़ी तसल्ली मिलती है
एक बेदाग़ कागज़ पर
काली स्याही पोत देने से ।
आड़ी-तिरछी लकीरें खींच देता हूँ,
इसी कोशिश में कि
शायद कोई कविता बन पड़े ।
" नववर्ष की शुभकामनाओं सहित "
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