जब ऊषा की श्वेत किरन
गुनगुना अहसास दिलायेगी,
जब ठण्डी-शीतल पुरवाई
अपनी चुभन घटायेगी,
जब बरखा की बूँद-बूँद फिर
प्रीत का पाठ पढ़ायेगी,
मैं भी अपने अहसासों की,
सच्ची कथा सुनाऊँगा ।
मैं बसन्त, फिर आऊँगा ।।
जब वृक्षों पर बने घरौंदे
तिनके-तिनके टूट गये,
जब तितली के नाजुक रिश्ते
बागीचों से छूट गये,
और मधुप, मधु की खातिर जब
काँटों को ही लूट गये,
तब मैं सूखी शाखों पर फिर,
नये पुष्प बिखराऊँगा ।
मैं बसन्त, फिर आऊँगा ।।
जब भीमकाय यायावर नीरद
तन का वजन घटायेगा,
जब ये समय ठिठुर-ठिठुरकर
अपने संवाद सुनायेगा,
और चकोर घायल होकर जब
चंदा से ना मिल पायेगा,
मैं उस बेवस पंछी को कुछ,
नये पँख पहनाऊँगा ।
मैं बसन्त, फिर आऊँगा ।।
गुनगुना अहसास दिलायेगी,
जब ठण्डी-शीतल पुरवाई
अपनी चुभन घटायेगी,
जब बरखा की बूँद-बूँद फिर
प्रीत का पाठ पढ़ायेगी,
मैं भी अपने अहसासों की,
सच्ची कथा सुनाऊँगा ।
मैं बसन्त, फिर आऊँगा ।।
जब वृक्षों पर बने घरौंदे
तिनके-तिनके टूट गये,
जब तितली के नाजुक रिश्ते
बागीचों से छूट गये,
और मधुप, मधु की खातिर जब
काँटों को ही लूट गये,
तब मैं सूखी शाखों पर फिर,
नये पुष्प बिखराऊँगा ।
मैं बसन्त, फिर आऊँगा ।।
जब भीमकाय यायावर नीरद
तन का वजन घटायेगा,
जब ये समय ठिठुर-ठिठुरकर
अपने संवाद सुनायेगा,
और चकोर घायल होकर जब
चंदा से ना मिल पायेगा,
मैं उस बेवस पंछी को कुछ,
नये पँख पहनाऊँगा ।
मैं बसन्त, फिर आऊँगा ।।
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