तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Wednesday, 19 December 2012

शर्म आती है !!!

मानसिकता घृणित हो गयी
और पौरुषत्व खोखला  
जीना जाने हो गया
कितना मुश्किल ।

उजाला डराता घूरती आँखों से
अँधेरा सन्नाटे से,
आहटें दर-बदर पीछा करती ।

घिनौनी कामनायें,
घिनौने शख्श, 
घिनौना कृत्य,
लील गयी एक जान मासूम सी ।

जाने कब तक रोयेंगे रोना हम
हालातों का,
शर्म आती है
खुद पर,
अपने तथाकथित सुशिक्षित और 
सभ्य समाज पर ।




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