तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday 28 July 2017

शाम

बारिश में भीगे पेड़ों की कुछ शाख़ों से
झूल रही है शाम

शाम, कि जिसने बादल के झुमके पहने हैं
शाम, कि जिसने बूँदों से बाँधा है जूड़ा
और जिसके पैरों को झील का पानी ऐसे रंगता है
गोया दुल्हन के पैरों पे महावर

शाम कि जो मेरी खिड़की के पास सजी है
और दूर किसी बिल्डिंग के पन्द्रहवें माले पर
उग आया है चाँद

चाय का प्याला टेबल में रख
मैं कागज़ पर कुछ लफ़्ज़ों से
तेरा चेहरा बनाने की कोशिश में हूँ,
तेरे इस चेहरे को मैंने नाम दिया है 'शाम' !

अब भी बारिश रूह की सूरत बरस रही है
तुम जीवन के इक गाने पर नाच रही हो

अक्सर ऐसा होता है,
मैं दिन से लड़-लड़कर तुझ तक आता हूँ
पर इक तू है जो मुझको भूल रही है शाम,
अब भी बारिश में भीगे पेड़ों की
कुछ शाखों से झूल रही है शाम |

~ आशीष नैथानी !!