रात पूनम की,
स्वच्छ धवल आकाश
शबनम की बूँद से तारे
मैं खड़ा छत पर
सुनसान, वीरान अँधेरा
सुहाना मौसम
बातों में मशगूल
मैं और मेरी चंदा |
बहुत हँसी हैं वो
आज आँखों में काजल
बालों में गजरा सजा है |
मैंने पूछा, कैसी हो ?
ठीक हूँ, वो मुस्कुरायी |
तुम बड़ी खूब लगती हो
चन्दा हूँ, बादल नहीं
गर्व से भरा उत्तर मिला |
फिर मैं साहस जुटाकर बोला
मेरा कद कितना है ?
आकाश से कम |
मैं कितना सफ़र तय करूँगा ?
हवा से कम, पानी से कम |
मेरे दिल की सीमा ?
धरती से छोटी है, बहुत छोटी है |
मेरे दिल के शब्द फूट गये,
मुझे तुम्हारे साथ सफ़र तय करना है |
मुझे नभ से धरा का दर्शन करना है |
मुझे तुम्हारे संग जीना है, संग मरना है |
मेरा इज़हार पूरा हुआ ||
कोमल लबों से गर्जना हुयी
चन्दा को पाना खेल नहीं है
बादल होती तो टूटकर बरस जाती
धुप होती तो खिलकर चमक जाती
"मैं राजकन्या हूँ नभ की"
तुम्हारा हक़ सिर्फ दीदार करना है
हमें पाने की मुराद रखने वाले
अपने वजूद को जरा देख ले ||
मैंने अपना सर झुकाया
निराश को कमरे में लौट आया
या खुदा तुने भी क्या खेल खिलाया,
सच्चे आशिक के दिल को हरजाई से मिलाया ||