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एक हसीं दौर था तेरी गलियों में आने का,जब न था सलीका तुम्हें चेहरा छुपाने का |
कोई यूँ ही नहीं जलता मोहब्बत में बेवजह,
शमा से कुछ तो रिश्ता रहा होगा परवाने का |
एक हसीं दौर था तेरी गलियों में आने का ||
----------------------"आशीष नैथानी/हैदराबाद"----------------------
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