प्रियतम तुमने कैसे हमको इन अन्धी राहों में छोड़ दिया,
पत्थर सा मजबूत ह्रदय था, प्रीत प्रहार से तोड़ दिया |
मैं कहता था ना तुमसे लगता है डर अंधियारे से,
फिर भी तुमने अंधकार को मेरी ओर ही मोड़ दिया |
प्रियतम तुमने कैसे हमको इन अन्धी राहों में छोड़ दिया ||
(२)
तन्हा का 'त' ही भारी है, तन्हाई की बात कहाँ,
बिस्तर पर आंसू पसरे हैं, ख्वाबों वाली रात कहाँ |
आधी लकीर लिये कब तक जग-जग भटकेगी 'ऐ पगली',
मेरे हाथों में आधी रेखा, तू ढूंढे ऐसा हाथ कहाँ |
तन्हा का 'त' ही भारी है, तन्हाई की बात कहाँ ||
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