तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday, 4 May 2012

"इश्क में बातें बनाना कहाँ अच्छा"

इश्क में बातें बनाना कहाँ अच्छा |
अपनी ही तीली से घर जलाना
कहाँ अच्छा ||

माना कि सीखा है हुनर तुमने गिरगिटों से,

माशूक से ही रंग छिपाना कहाँ अच्छा |

वक़्त है जो वक़्त सा दौड़ा चला जायेगा,

गुजरे हुए लम्हात पर आंसू बहाना कहाँ अच्छा |

मेरी खिड़की ने भी अब रौनकें बाँटना बन्द कर दिया है,

तेरा अपनी खिडकियों पर परदे चढ़ाना कहाँ अच्छा |

मैं तो शायर हूँ हमेशा कुछ न कुछ लिखता रहूँगा,

अक्सर तुम्हारा इस कलम को 'सौतन' बताना कहाँ अच्छा |

फिर से एक रोज गुजर गया तेरे तस्सवुर में छत पर,

करके वादा, घर के पीछे, मिलने ना आना कहाँ अच्छा |
इश्क में बातें बनाना कहाँ अच्छा ||

----------------------------------"आशीष नैथानी / हैदराबाद"-------------------------------------


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