इश्क में बातें बनाना कहाँ अच्छा |
अपनी ही तीली से घर जलाना कहाँ अच्छा ||
माना कि सीखा है हुनर तुमने गिरगिटों से,
माशूक से ही रंग छिपाना कहाँ अच्छा |
वक़्त है जो वक़्त सा दौड़ा चला जायेगा,
गुजरे हुए लम्हात पर आंसू बहाना कहाँ अच्छा |
मेरी खिड़की ने भी अब रौनकें बाँटना बन्द कर दिया है,
तेरा अपनी खिडकियों पर परदे चढ़ाना कहाँ अच्छा |
मैं तो शायर हूँ हमेशा कुछ न कुछ लिखता रहूँगा,
अक्सर तुम्हारा इस कलम को 'सौतन' बताना कहाँ अच्छा |
फिर से एक रोज गुजर गया तेरे तस्सवुर में छत पर,
करके वादा, घर के पीछे, मिलने ना आना कहाँ अच्छा |
इश्क में बातें बनाना कहाँ अच्छा ||
----------------------------------"आशीष नैथानी / हैदराबाद"-------------------------------------
अपनी ही तीली से घर जलाना कहाँ अच्छा ||
माना कि सीखा है हुनर तुमने गिरगिटों से,
माशूक से ही रंग छिपाना कहाँ अच्छा |
वक़्त है जो वक़्त सा दौड़ा चला जायेगा,
गुजरे हुए लम्हात पर आंसू बहाना कहाँ अच्छा |
मेरी खिड़की ने भी अब रौनकें बाँटना बन्द कर दिया है,
तेरा अपनी खिडकियों पर परदे चढ़ाना कहाँ अच्छा |
मैं तो शायर हूँ हमेशा कुछ न कुछ लिखता रहूँगा,
अक्सर तुम्हारा इस कलम को 'सौतन' बताना कहाँ अच्छा |
फिर से एक रोज गुजर गया तेरे तस्सवुर में छत पर,
करके वादा, घर के पीछे, मिलने ना आना कहाँ अच्छा |
इश्क में बातें बनाना कहाँ अच्छा ||
----------------------------------"आशीष नैथानी / हैदराबाद"-------------------------------------
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