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हम तो लड़ते रहे कुदरत से तुम्हें पाने में,
तुमने भी बुना खूब जाल हमें फ़साने में |
और क्यों ना हो दर्द शायरी में इस कदर,
जब दिल ही मजबूर है इसे रख पाने में ||
हम तो लड़ते रहे कुदरत से तुम्हें पाने में,
तुमने भी बुना खूब जाल हमें फ़साने में |
और क्यों ना हो दर्द शायरी में इस कदर,
जब दिल ही मजबूर है इसे रख पाने में ||
------------------"आशीष नैथानी/ हैदराबाद"---------------------
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