पलकों से गिरता हर आँसू मुडकर ये कहता है,
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है |
यादें तेरी पास मेरे और जिस्म पराया सा,
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा, तन्हाई सहता है |
सीखी जिससे रिश्तेदारी, रश्मों की बुनियादें,
वो खुद ही रिश्तों से अब मुँह फेरे रहता है |
सोच रहा था, इस बार करूंगा राज की बातें,
क्या मालूम कि राज हमेशा राज ही रहता है |
मुझको जिस पर एतबार कुछ खुद से ज्यादा "भाई",
होकर रुखसत राख-राख गंगा में बहता है |
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है ||
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है |
यादें तेरी पास मेरे और जिस्म पराया सा,
फिर भी दिल तन्हा-तन्हा, तन्हाई सहता है |
सीखी जिससे रिश्तेदारी, रश्मों की बुनियादें,
वो खुद ही रिश्तों से अब मुँह फेरे रहता है |
सोच रहा था, इस बार करूंगा राज की बातें,
क्या मालूम कि राज हमेशा राज ही रहता है |
मुझको जिस पर एतबार कुछ खुद से ज्यादा "भाई",
होकर रुखसत राख-राख गंगा में बहता है |
कोई मेरा अपना भी "जन्नत" में रहता है ||
--------------------- "आशीष नैथानी/ हैदराबाद" ----------------------
No comments:
Post a Comment