तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Thursday, 20 August 2015

मैं जहाँ से आया हूँ

वहाँ आज भी सड़क किनारे नालियों का जल
पाले से जमा रहता है आठ-नौ महीने,
माएँ बच्चों को पीठ पर लादे लकड़ियाँ बीनती हैं
स्कूली बच्चों की शाम रास्तों पर दौड़ते-भागते-खेलते बीतती है
वहाँ अब भी धूप उगने पर सुबह होती है
धूप ढलने पर रात

वहाँ अब भी पेड़ फल उगाने में कोताही नहीं करते
कोयल कौवे तोते पेड़ों पर ठहरते हैं
कौवे अब भी खबर देते हैं कि मेहमान आने को हैं,
बल्ब का प्रकाश वहाँ पहुँच चुका है फिर भी
कई रातें चिमनियों के मंद प्रकाश में खिलती हैं,  
तितलियों का आवारापन अब भी बरकरार है
उतने ही सजीले हैं उनके परों के रंग आज भी
समय से बेफिक्र मवेशी जुगाली करते हैं रात-रातभर

बच्चे अब भी जिज्ञासू हैं जुगनु की रौशनी के प्रति
वहाँ हल, कुदाल, दराँती प्रयोग में है
वहाँ प्यार, परिवार, मौसम, जीवन जैसी कई चीजें जिन्दा हैं  

शहर के ट्रैफिक में फँसा एक मामूली आदमी
कुछेक सालों में कीमती सामान वहाँ छोड़ आया हैं
मैं जहाँ से आया हूँ
और वापसी का कोई नक्शा भी नहीं है

मेरी स्थिति यह कि
लैपटॉप के एक नोटपैड में ऑफिस का जरुरी काम
और दूसरे नोटपैड में कुछ उदास शब्दों से भरी कविता लिखता हूँ    
मेरे लिए यही जीवन का शाब्दिक अर्थ हो चला है

किन्तु कहीं दूर अब भी
मिट्टी के चूल्हे पर पक रही होगी मक्के की रोटी
पानी के श्रोतों पर गूँज रही होगी हँसी
विवाह में कहीं मशकबीन बज रही होगी
दुल्हन विदा हो रही होगी,
पाठशालाओं में बच्चे शैतानी कर रहे होंगे
प्रेम किसी कहानी की आधारशिला बन रहा होगा
इंद्रधनुष बच्चों की बातों में शामिल होगा
खेत खिल रहे होंगे रंगों से
पक रहे होंगे काफल के फल दूर कहीं
या कहूँ, जीवन पक रहा होगा

दूर जंगल में बुराँस खिल रहा होगा
जीवन का बुराँस.







आशीष नैथानी
हैदराबाद

अगस्त. २०/२०१५ 

4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (22-08-2015) को "बौखलाने से कुछ नहीं होता है" (चर्चा अंक-2075) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. बहुत-बहुत शुक्रिया सर !

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  2. पढ़ते-पढ़ते गांव की वादियों में डूब गया मन ..
    बहुत सुन्दर रचना

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  3. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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