तुम्हें ये दूर से शायद
कोई छप्पर दिखाई दे
करीब आकर तो देखो क्या
पता फिर घर दिखाई दे |
वही मिट्टी जिसे दाँतों
तले रक्खा किये इक उम्र
मेरी आँखों को कम से कम न
यूँ बंजर दिखाई दे |
वो टूटा फर्श उखड़ी छत,
मगर परिवार के सब लोग
दुआ करती हैं आँखें फिर
वही मंज़र दिखाई दे |
जरा काबिलियत बाकी विजय
का हौसला हो तो
समन्दर की सतह पर तैरता
पत्थर दिखाई दे |
ऐ मेरे दोस्त ये ग़म छोड़कर
ऐसी जगह जाना
जहाँ उम्मीद का फैला हुआ
सागर दिखाई दे ||
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