तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday, 4 October 2015

ग़ज़ल - तुम्हें ये दूर से !

तुम्हें ये दूर से शायद कोई छप्पर दिखाई दे
करीब आकर तो देखो क्या पता फिर घर दिखाई दे |

वही मिट्टी जिसे दाँतों तले रक्खा किये इक उम्र
मेरी आँखों को कम से कम न यूँ बंजर दिखाई दे |

वो टूटा फर्श उखड़ी छत, मगर परिवार के सब लोग
दुआ करती हैं आँखें फिर वही मंज़र दिखाई दे |

जरा काबिलियत बाकी विजय का हौसला हो तो
समन्दर की सतह पर तैरता पत्थर दिखाई दे |

ऐ मेरे दोस्त ये ग़म छोड़कर ऐसी जगह जाना 
जहाँ उम्मीद का फैला हुआ सागर दिखाई दे ||

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