सूरजमुखी तके न सूरज
इन्द्रधनुष बेरंग हो जाये
सब पंछी लौटें घर को पर
होली आयी, पिया न आये
तनातनी की हालत है, सीमा पर मौसम मैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।
मुल्क, मुल्क सा नहीं रहा
अब रंग, रंग सा नहीं रहा
पिचकारी उगले जहरीला
पानी, पानी सा नहीं रहा
आज स्वाद गुझिया का कितना तीखा और कसैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।
सरहद पर जब बरसी गोली
कैसा फागुन, कैसी होली
सर उखाड़कर साथ ले गयी
दुष्ट 'पाक' आतंकी टोली
आँचल 'वीर' की विधवा का, रो-रोकर मटमैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।
आशीष नैथानी 'सलिल'
इन्द्रधनुष बेरंग हो जाये
सब पंछी लौटें घर को पर
होली आयी, पिया न आये
तनातनी की हालत है, सीमा पर मौसम मैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।
मुल्क, मुल्क सा नहीं रहा
अब रंग, रंग सा नहीं रहा
पिचकारी उगले जहरीला
पानी, पानी सा नहीं रहा
आज स्वाद गुझिया का कितना तीखा और कसैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।
सरहद पर जब बरसी गोली
कैसा फागुन, कैसी होली
सर उखाड़कर साथ ले गयी
दुष्ट 'पाक' आतंकी टोली
आँचल 'वीर' की विधवा का, रो-रोकर मटमैला है
फागुन की पूनम को कैसा घना अँधेरा फैला है ।।
सुन्दर रचना
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