तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 2 September 2018

ग़ज़ल - वो कि मुड़-मुड़ के देखता है मुझे !!

वो कि मुड़-मुड़ के देखता है मुझे
ये ख़मोशी बड़ी सदा है मुझे

चाँद तारों से दोस्ती है मिरी
मुद्दतों से मुग़ालता है मुझे

तुमको खो कर बिखर गया हूँ मैं
मेरा होना भी सालता है मुझे

बहता दरिया उछालकर बूँदें
ख़ामुशी से जगा रहा है मुझे

ज़िन्दगी तेरे ग़म कहूँ किससे
किसने आराम से सुना है मुझे

इसलिए भी बिखेर देता हूँ
कोई जी भर समेटता है मुझे

लफ्ज़, आवाज़ हैं अपाहिज को
सिर्फ इनका ही आसरा है मुझे

एक अरसे से लापता हूँ मगर
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’

~ आशीष नैथानी 'सलिल' !!

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