तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday 2 September 2018

शेर-दर-शेर समालोचना !!

ग़ज़ल - आशीष नैथानी 'सलिल'
समालोचना - मयंक अवस्थी

या मुहब्बत का असर जाना है
या ज़माने को सँवर जाना है

या तो जायेगी मिरी ख़ुद्दारी
या मिरे कांधों से सर जाना है

चाँद तारों को सुलाकर शब को
सुब्ह अम्बर से उतर जाना है

एक बच्चे की हँसी के ख़ातिर
वो डराये, मुझे डर जाना है

उसके हाथों की छुहन का जादू
वक़्त के साथ गुज़र जाना है

पिछले तूफ़ाँ में उड़े थे पंछी
अबके तूफ़ाँ में शजर जाना है

मौसमी चक्र बनाने के लिए
फूल-पत्तों को उतर जाना है

सरहदें अपनी परे रख हमको
“आज हर हद से गुजर जाना है ”

जिस्म मरता है फ़क़त इक ही बार
मौत हर दिन तुझे मर जाना है

आशीष नैथानी ‘सलिल’

"ग़ज़ल पर क्या कहते हैं मयंक अवस्थी जी..."

या मुहब्बत का असर जाना है
या ज़माने को सँवर जाना है

मुहब्बत का असर तो जाना नहीं है इसलिये ज़माने को संवरना होगा !!
ये बात दीगर है कि इसमे भी ज़माने लगेंगे!
मतला खूब है !!!

या तो जायेगी मिरी ख़ुद्दारी
या मिरे कांधों से सर जाना है

सानी मिसरे का सौदा बेहतर होगा !! खुद्दारी सर से बहुत ज़ियादा कीमती शै है !!

चाँद तारों को सुलाकर शब को
सुब्ह अम्बर से उतर जाना है

मंज़रकशी अच्छी है !!!

एक बच्चे की हँसी की ख़ातिर
वो डराये, मुझे डर जाना है

बहुत सुन्दर !! बहुत सुन्दर !! नया और खुश्बूदार शेर है !!
एक अलग सा रंग है इसमे प्रेम का और भावना का !!

पिछले तूफ़ाँ में उड़े थे पंछी
अबके तूफ़ाँ में शजर जाना है

तूफान का अगला प्रहार घातक होगा !! शेर की नवीनता बहुत अपील कर रही है !!

मौसमी चक्र बनाने के लिए
फूल-पत्तों को उतर जाना है

ये चमन यूँ ही रहेगा !! … और बागबाँ जाते हैं गुलशन तेरा आबाद रहे !!!
एक बार फिर नया और अच्छा शेर कहा है !!!

सरहदें अपनी परे रख हमको
“आज हर हद से गुजर जाना है ”

मैं हवा हूँ कहाँ वतन मेरा !!! सरहदें ने शेर को एक specific domain दिया है जो असरदार है !!!

जिस्म मरता है फ़क़त इक ही बार
मौत हर दिन तुझे मर जाना है

कारगर प्रयोग है और सानी मिसरे की गढन भी प्रभावशाली है !!

आशीष नैथानी ‘सलिल' भाई, ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें

– मयंक अवस्थी !!

No comments:

Post a Comment