लड़ो नेताओं, खूब लड़ो
शब्दों से लड़ो, डंडों से लड़ो
चाकू-छुरियों-गोलियों से लड़ो
चप्पलों से, जूतों से, लात-घूंसों से लड़ो
लड़ो कि लड़ने से ही मिलेगी कुर्सी तुम्हें
मंत्री-मुख्यमंत्री की,
कुर्सी मिलेगी तो पढेंगे तुम्हारे बच्चे विदेशों में
औरों के पढ़ें न पढ़ें,
कुर्सी मिलेगी तो ही कर सकोगे तमाम अनैतिक काम
कानून को साथ रख,
तभी तो भरपूर सैर-सपाटा कर सकोगे,
लड़ो कि तुम बाहुबली हो
राजाओं के वंशज हो
और लड़ना तुम्हारे रक्त में हैं
लड़-लड़कर भूल जाओ आदमी व स्वान का भेद
काट खाओ एक दूजे को
अखबार की चटपटी ख़बरें बन जाओ
भूल जाओ बलिदानों को
बस याद करो साल में एक बार कैमरे के सामने
रस्म-अदायगी के लिए
लड़ो कि तुम्हारी लड़ाई से अनभिज्ञ है
देश की सरहद पर खड़ा तुम्हारे प्रदेश का सैनिक पुत्र
जिसने अपना गाँव तुम्हारे हवाले छोड़ा है
अनभिज्ञ हैं टूटी छतों के नीचे पढने वाले बच्चे
अनभिज्ञ हैं शेष किसान
अनभिज्ञ हैं पलायन कर चुके नौजवान,
तुम्हें लगता है कि वे सब अनभिज्ञ हैं ?
लड़ो कि लड़-लड़कर लहूलुहान हो जाओ
निचोड़ दो एक-दूसरे के खून का कतरा-कतरा
ताकि जब गंगा इस दूषित रक्त को बहा ले जाय हरिद्वार से पार
तो अगली बरसात के बाद खिलें कुछ नए पुष्प
कुछ नई खुशबुओं का जन्म हो
नई उम्मीदें पैदा हों
और जो सपने अधूरे रह गये हैं
उन्हें पूर्णता प्राप्त हो |
आशीष नैथानी
मार्च,२५/२०१६
मुम्बई
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (26-03-2016) को "होली तो अब होली" (चर्चा अंक - 2293) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'