तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Sunday, 20 March 2016

दीवारों पे किसका चेहरा बनता है !!

दीवारों पे किसका चेहरा बनता है
पागलपन में जाने क्या-क्या बनता है

कुछ यादों को यह सुन-पढ़के जज़्ब किया
चट्टानों से दबके हीरा बनता है

धूप गली में आई सबने पर्दा किया
धूप से शायद सबका रिश्ता बनता है

दो पंछी, थोड़ी बारिश, थोड़ी सी धूप
सदियों बाद कहीं ये लम्हा बनता है

-- आशीष नैथानी !!

2 comments:

  1. जी शुक्रिया !
    होली की शुभकामनाएं !!

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  2. बहुत खूब...सार्थक अभिव्यक्ति...

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