पंछियों के घर लुटे और लोग बेघर हो गए
ज़लज़ला आया तो ऐसा ख़ाब बंजर हो गए
घर बनाये ईंट, आँसू, ख़ाब, पत्थर जोड़कर
फिर से वापस ईंट, आँसू, ख़ाब, पत्थर हो गए
मिट गयी दौलत की दूरी, भेद जीवन-मृत्यु का
एक कम्पन से प्रजा-राजा बराबर हो गए
मंदिरों के बुत रहे ख़ामोश तो फिर यूँ हुआ
त्रासदी में फ़ौज के जांबाज़ ईश्वर हो गए
रम गए हैं खेल में, है नाम जिसका ज़िन्दगी
चंद साँसों के खिलौने जब मयस्सर हो गए
आशीष नैथानी 'सलिल' !!
हैदराबाद
!! यह ग़ज़ल 'लफ्ज़' पोर्टल पर भी पढ़ी जा सकती है !!
ज़लज़ला आया तो ऐसा ख़ाब बंजर हो गए
घर बनाये ईंट, आँसू, ख़ाब, पत्थर जोड़कर
फिर से वापस ईंट, आँसू, ख़ाब, पत्थर हो गए
मिट गयी दौलत की दूरी, भेद जीवन-मृत्यु का
एक कम्पन से प्रजा-राजा बराबर हो गए
मंदिरों के बुत रहे ख़ामोश तो फिर यूँ हुआ
त्रासदी में फ़ौज के जांबाज़ ईश्वर हो गए
रम गए हैं खेल में, है नाम जिसका ज़िन्दगी
चंद साँसों के खिलौने जब मयस्सर हो गए
आशीष नैथानी 'सलिल' !!
हैदराबाद
!! यह ग़ज़ल 'लफ्ज़' पोर्टल पर भी पढ़ी जा सकती है !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (31-05-2015) को "कचरे में उपजी दिव्य सोच" {चर्चा अंक- 1992} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
सटीक और सामयिक ग़ज़ल
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