तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Tuesday, 17 September 2013

नई ग़ज़ल !

मुस्कुराना छोड़कर जाऊँ कहाँ |
आबो-दाना छोड़कर जाऊँ कहाँ ||

दिल लगाना छोड़कर जाऊँ कहाँ
ये फ़साना छोड़कर जाऊँ कहाँ ||

जिस ज़माने ने दिया सब कुछ मुझे
वो ज़माना छोड़कर जाऊँ कहाँ ||

धूप जंगल छाँव पानी औ' हवा
घर सुहाना छोड़कर जाऊँ कहाँ ||

छूट जाएँ गर ये सांसें ग़म नहीं
गीत-गाना छोड़कर जाऊँ कहाँ ||

ज़िंदगी के तल्ख़ रस्तों पर 'सलिल'
गुदगुदाना छोड़कर जाऊँ कहाँ ||

1 comment:

  1. बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...

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