अपनी चादर रख झोले में वापस लौट चला हूँ मैं
जो मिट्टी पगली मुझको, जिस मिट्टी का पगला हूँ मैं ।
क्या तारे क्या चन्दा-सूरज सब फीके-फीके से हैं
आज अँधेरी रात को जैसे जुगनू बन निकला हूँ मैं ।
ख़ाब जलेंगे, आँख शमा सी और जिगर होगा धुआँ
अपने और परायों के इस जग में खूब जला हूँ मैं ।
आज मराशिम टूटेंगे, टूटेगी यारी मतलब की
इन रिश्तों के नाम पे जाने कितनी बार छला हूँ मैं ।
वो आये कहने हमसे क्यों बदले-बदले रहते हो
हाँ जबसे देखा तुमको, थोडा-थोडा बदला हूँ मैं ।
एक 'सलिल' बेरंग हुआ पर कर डाले रंगीन कई
काली-काली सूरत में बस थोडा सा उजला हूँ मैं ।
जो मिट्टी पगली मुझको, जिस मिट्टी का पगला हूँ मैं ।
क्या तारे क्या चन्दा-सूरज सब फीके-फीके से हैं
आज अँधेरी रात को जैसे जुगनू बन निकला हूँ मैं ।
ख़ाब जलेंगे, आँख शमा सी और जिगर होगा धुआँ
अपने और परायों के इस जग में खूब जला हूँ मैं ।
आज मराशिम टूटेंगे, टूटेगी यारी मतलब की
इन रिश्तों के नाम पे जाने कितनी बार छला हूँ मैं ।
वो आये कहने हमसे क्यों बदले-बदले रहते हो
हाँ जबसे देखा तुमको, थोडा-थोडा बदला हूँ मैं ।
एक 'सलिल' बेरंग हुआ पर कर डाले रंगीन कई
काली-काली सूरत में बस थोडा सा उजला हूँ मैं ।
No comments:
Post a Comment