जगमगाते शह्र की इक शाम है
जिन्दगी फिरसे तुम्हारे नाम है ।
मेरे हाथों में है गुल की पंखुड़ी
और दिल में इश्क का पैगाम है ।
है नशा कुछ और ही इस याद में
ये भजन, गीता, जुबाँ पर राम है ।
गेसुओं की छांह में आकर लगा
अब यहाँ आराम ही आराम है ।
तुम न आये, मैं रहा चौराह पर
इश्क का कैसा हुआ अंजाम है ।
अब न दो तालीम इज्जत की 'सलिल'
जिन्दगी फिरसे तुम्हारे नाम है ।
मेरे हाथों में है गुल की पंखुड़ी
और दिल में इश्क का पैगाम है ।
है नशा कुछ और ही इस याद में
ये भजन, गीता, जुबाँ पर राम है ।
गेसुओं की छांह में आकर लगा
अब यहाँ आराम ही आराम है ।
तुम न आये, मैं रहा चौराह पर
इश्क का कैसा हुआ अंजाम है ।
अब न दो तालीम इज्जत की 'सलिल'
यूँ भी तुमपर प्रीत का इल्जाम है ।
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