तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Tuesday, 19 March 2013

अब यहाँ आराम ही आराम है !!!

जगमगाते शह्र की इक शाम है
जिन्दगी फिरसे तुम्हारे नाम है ।

मेरे हाथों में है गुल की पंखुड़ी
और दिल में इश्क का पैगाम है ।

है नशा कुछ और ही इस याद में
ये भजन, गीता, जुबाँ पर राम है ।

गेसुओं की छांह में आकर लगा
अब यहाँ आराम ही आराम है ।

तुम न आये, मैं रहा चौराह पर
इश्क का कैसा हुआ अंजाम है ।

अब न दो तालीम इज्जत की 'सलिल'

यूँ भी तुमपर प्रीत का इल्जाम है ।

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