तिश्नगी

तिश्नगी प्रीत है, रीत है, गीत है
तिश्नगी प्यास है, हार है, जीत है

Friday, 14 December 2012

प्रीत का गीत (12/12/12)

सखी, पिया परदेश गये हैं ।
छोड़ यही सन्देश गये है ।।

महिने दो महिने हो आये,
उनके आने की आस लगाये ।
तकती रस्ता शाम - सवेरे,
पर वापस कोई ना आये ।
ना आँसू आँखों में छाये,
बता यही निर्देश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।।

दिन - महिने मुश्किल से बीते,
राशन के बर्तन भी रीते ।
घर - पनघट सब बंजर- बंजर,
होंठ बेचारे खुद को सीते ।
ये जुगनू अंधियारा पीते,
सुना हमें उपदेश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।

बेसुरी हुई कोयल की बोली,
बेरंग मनी थी अबकी होली ।
बिस्तर पर करवट और सिलवट,
और यादों ने याद टटोली ।
कैसी सेहत, कैसी झोली ?
जाने कैसे देश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।

[काव्य-संग्रह "तिश्नगी" से]
 

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