सखी, पिया परदेश गये हैं ।
छोड़ यही सन्देश गये है ।।
महिने दो महिने हो आये,
उनके आने की आस लगाये ।
तकती रस्ता शाम - सवेरे,
पर वापस कोई ना आये ।
ना आँसू आँखों में छाये,
बता यही निर्देश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।।
दिन - महिने मुश्किल से बीते,
राशन के बर्तन भी रीते ।
घर - पनघट सब बंजर- बंजर,
होंठ बेचारे खुद को सीते ।
ये जुगनू अंधियारा पीते,
सुना हमें उपदेश गये हैं ।
सखी, पिया परदेश गये हैं ।
बेसुरी हुई कोयल की बोली,
बेरंग मनी थी अबकी होली ।
बिस्तर पर करवट और सिलवट,
और यादों ने याद टटोली ।
कैसी सेहत, कैसी झोली ?
जाने कैसे देश गये हैं ।
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